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मोक्षशास्त्र सटीक प्रदेशबन्ध- ज्ञानावरणादि कर्मरूप होनेवाले पुदगल स्कन्धोंके परमाणुओंकी संख्याको प्रदेशबन्ध कहते हैं।
नोट- इन चार प्रकारके बन्धों में प्रकृति और प्रदेशबन्ध योगके निमित्तसे होते हैं तथा स्थिति और अनुभागबन्ध कषायके निमित्तसे होते हैं॥३॥
प्रकृतिबन्धका वर्णन-प्रकृतिबन्धके मूल भेदआद्योज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नाम
___ गोत्रान्तरायाः ॥४॥
अर्थ- पहला प्रकृतिबन्ध-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ऐसे आठ प्रकारका है।
ज्ञानावरण- जो आत्माके ज्ञानगुणोंको घाते उसे ज्ञानावरण कहते हैं।
दर्शनावरण- जो आत्माके दर्शनगुणको घाते उसे दर्शनावरण कहते हैं।
वेदनीय-जिसके उदयसे जीवोंको सुख दुःख होवे उसे वेदनीय कहते हैं।
मोहनीय- जिसके उदयसे जीव अपने स्वरूपको भूलकर अन्यको अपना समझने लगे उसे मोहनीय कहते हैं।
आयु- जो इस जीवको नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवोंमें से किसी शरीर में रोक रखे उसे आयुकर्म कहते है।
नाम- जिसके उदयसे शरीर आदिकी रचना हो उसे नाम-कर्म कहते है। . गोत्र- जिसके उदयसे यह जीव ऊंच नीच कुलमें पैदा होवे उसे गोत्रकर्म कहते हैं।
अन्तराय-जिसके उदयसे दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यमें विध आवे उसे अन्तराय कर्म कहते हैं।
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