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माक्षशास्त्र सर्टीक अर्थ- नरकायु, तिर्यगायु, मानुषायु और देवायुये चार आयुकर्मके भेद हैं।
___ नरकायु-जिस कर्मके उदयसे जीव नारकीके शरीरमें रुका रहे नरकायु कहते है। इसी तरह सब भेदोंसे समझना चाहिये ॥१०॥
नाम कर्मके भेद
गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपुर्व्यागुरुलघूपधातपरघातातपोद्योतोछ्वासविहायोगतयःप्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तिस्थिरादेययशः कीर्तिसेतराणि तीर्थकरत्वं च ॥११॥
__ अर्थ- गति, जाति, शरीर, अङ्गोपांग, निर्माण, बन्धन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, आनुपूर्व्य, अगुरुलघू, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उछ्वास और विहायोगति । ये इक्कीस तथा प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, सूक्ष्म, पर्याप्ति, स्थिर, आदेय, यश:कीर्ति ये दश तथा इनके उल्टे साधारण, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अशुभ, स्थूल, अपर्याप्त, अस्थिर, अनादेय, अयश:कीर्ति, ये दश और तीर्थकरत्व इस प्रकार सब मिलकर नामकर्मके ४२ भेद है।
१-गति- जिसके उदयसे जीव दसरे भवको प्राप्त करता है उसे गति नामकर्म कहते हैं। इसके चार भेद हैं १-नरकगति, २-तिर्यग्गति, ३-मनुष्यगति और ४-देवगति। जिसके उदयसे आत्माको नरकगति प्राप्त होवे उसे नरकगति नामकर्म कहते हैं। इसी प्रकार अन्य भेदोंका लक्षण जानना चाहिये। 1.गति आदिके अवांतर भेद जोडनेसे ९३ भेद होते हैं।
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