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________________ १४० माक्षशास्त्र सर्टीक अर्थ- नरकायु, तिर्यगायु, मानुषायु और देवायुये चार आयुकर्मके भेद हैं। ___ नरकायु-जिस कर्मके उदयसे जीव नारकीके शरीरमें रुका रहे नरकायु कहते है। इसी तरह सब भेदोंसे समझना चाहिये ॥१०॥ नाम कर्मके भेद गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपुर्व्यागुरुलघूपधातपरघातातपोद्योतोछ्वासविहायोगतयःप्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तिस्थिरादेययशः कीर्तिसेतराणि तीर्थकरत्वं च ॥११॥ __ अर्थ- गति, जाति, शरीर, अङ्गोपांग, निर्माण, बन्धन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, आनुपूर्व्य, अगुरुलघू, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उछ्वास और विहायोगति । ये इक्कीस तथा प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, सूक्ष्म, पर्याप्ति, स्थिर, आदेय, यश:कीर्ति ये दश तथा इनके उल्टे साधारण, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अशुभ, स्थूल, अपर्याप्त, अस्थिर, अनादेय, अयश:कीर्ति, ये दश और तीर्थकरत्व इस प्रकार सब मिलकर नामकर्मके ४२ भेद है। १-गति- जिसके उदयसे जीव दसरे भवको प्राप्त करता है उसे गति नामकर्म कहते हैं। इसके चार भेद हैं १-नरकगति, २-तिर्यग्गति, ३-मनुष्यगति और ४-देवगति। जिसके उदयसे आत्माको नरकगति प्राप्त होवे उसे नरकगति नामकर्म कहते हैं। इसी प्रकार अन्य भेदोंका लक्षण जानना चाहिये। 1.गति आदिके अवांतर भेद जोडनेसे ९३ भेद होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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