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________________ अग्रम अध्याय [ १३९ पुंवेद-जिसके उदयसे स्त्रीके साथ रमनेके भाव हो वह पुंवेद है। नपुंसक वेद-जिसके उदयसे स्त्री पुरुष दोनोंसे रमनेकी इच्छा हो वह नपुंसकवेद है।' अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ-जो आत्माके सम्यग्दर्शन- गुणको प्रकट न होने दे उसे अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ कहते है। अनन्त संसारका कारण होनेसे मिथ्यात्वको अनन्त कहते हैं उसके साथ ही इसका अनुबन्ध (सम्बन्ध ) रहता है इसलिये इसको अनन्तानुबन्धी कहते है। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ- जिसके उदयसे देशचारित्र न हो सके उसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ कहते हैं। प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ-जो प्रत्याख्यान अर्थात् सकलचारित्रको घाते उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधमान माया लोभकहते हैं। संचलनक्रोधमानमायालोभ-जिसके उदयसे यथाख्यात चारित्र न हो सके उसे संचलन क्रोध मान माया लोभ कहते है। यह कषायसम अर्थात् संयमके साथ ज्वलित-जागृत रही आती है, इसलिये इसका नाम संचलन है। नोट- इन कषायोंमें आगे आगे मन्दता है और नीचेर तीव्रता है। __आयुकर्मके भेदनारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥१०॥ 1. हास्य आदि ९ कषाय क्रोधादिककी तरह आत्माके गुणोंका पूरा घात नहीं कर पाती इसलीये इन्हें नोकषाय (किचित् कषाय) कहते है। 2. अ-अल्पप्रत्याख्यान चारित्रका आवरण करनेवाला। 3. जो चारित्रमोहनीयके उपशम अथवा क्षयसे होता है उसे यथाख्यात चारित्र कहते है। 4.सम्यत्तदेससयलचरितजहक्खादचरणपरिणामे । ___ घादंति वा कसाया. चउसोल असंखलोगमिदा॥ - '२८३ जीवकाण्ड' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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