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________________ १३८] माक्षशास्त्र सटीक तीन दर्शनमोहनीय कर्मके भेद हैं। अकषाय वेदनीय और कषाय वेदनीय ये दो भेद चारित्र मोहनीयके हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुंवेद और नपुंसकवेद ये ९ अकषाय वेदनीयके भेद हैं और अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान और संचलन इन चार भेदस्वरूप क्रोध, मान माया लोभ ये सोलह भेद कषाय वेदनीयके हैं। भावार्थ- मोहनीय कर्मके मुख्यमें दो भेद हैं-१ दर्शनमोहनीय ' और २ चारित्रमोहनीय'उनमें दर्शनमोहनीयके तीन और चारित्र मोहनीयके २५ इस प्रकार कुल मिलाकर मोहनीय कर्मके २८ भेद है। मिथ्यात्व प्रकृति- जिस कर्मके द्वारा सर्वज्ञ-कथित मार्गसे परांगमुखता हो अर्थात् मिथ्यादर्शन हो उसे मिथ्यात्व प्रकृति कहते है। . सम्यक्त्व प्रकृति-जिस प्रकृतिके उदयसे आत्माके सम्यग्दर्शनमें दोष उत्पन्न हो उसे सम्यक्त्व प्रकृति कहते हैं। सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति- जिस प्रकृतिके उदयसे मिले हुए दही गुड़के स्वादकी तरह उभयरूप परिणाम हो उसे सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति कहते हैं। हास्य- जिसके उदयसे हँसी आवे वह हास्य नोकषाय हैं। रति- जिसके उदयसे विषयों में प्रेम हो वह रति है। अरति- जिसके उदयसे विषयों में प्रेम न हो वह अरति है। शोक- जिसके उदयसे शोक चिंता हो वह शोक हैं। भय- जिसके उदयसे डर लगे वह भय है। जुगुप्सा- जिसके उदयसे ग्लानि हो वह जुगुप्सा हैं। स्त्रीवेद-जिसके उदयसे पुरुषसे रमनेके भाव हो वह स्त्रीवेद है। 1. आत्माके सम्यक्त्व गुणको घाते ।.2. जो आत्माके चारित्रगुणको घाते। 3. सम्यक्त्व प्रकृति और सम्यमिथ्यात्व प्रकृति इन दो प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता किन्तु आत्माके शुभ परिणामोंसे मिथ्यात्व प्रकृतिकी अनुभाग शक्ति हीन हो जानेसे उसमें इन २ प्रकृतिरूप परिणमन हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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