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माक्षशास्त्र सटीक अर्थ-- परविवाहकरण [ अपने संरक्षणसे रहित दूसरेके पुत्र पुत्रियोंका विवाह करना कराना ], परिगृहीतेत्वरिकागमन [ पतिसहित व्यभिचारिणी स्त्रियों के पास आना जाना, लेनदेन रखना, रागभावपूर्वक बातचीत करना] , अपरिगृहीतेत्वरिकागमन [ पतिरहित वेश्या आदि व्यभिचारिणी स्त्रियोंके यहाँ आना जाना लेनदेन आदिका व्यवहार रखना ], अनङ्गक्रीड़ा[कामसेवनके लिये निश्चित अङ्गको छोड़कर अन्य अङ्गोंसे काम सेवन करना] और कामतीव्राभिनिवेश [ कामसेवन की अत्यन्त अभिलाषा रखना ], ये पांच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार हैं ॥२८॥
परिग्रहपरिमाणाणुव्रतके अतिचारक्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्य
प्रमाणातिक्रमाः ॥ २९॥ अर्थ-क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रम[ खेत तथा रहनेके घरों के प्रमाणका उल्लंघन करना ], हिरण्यसुवर्णप्रमाणतिक्रम[ चांदी और सोनेके प्रमाणका उलंघन करना , धनधान्यप्रमाणातिक्रम [ गाय भैस आदि पशु तथा गेहूँ चना आदि अनाजके प्रमाणका उल्लंघन करना ], दासीदासप्रमाणातिक्रम [ नौकर-नौकरानियों के प्रमाणका उल्लंघन करना ] और कुप्यप्रमाणातिक्रम [ वस्त्र तथा बर्तन आदिके प्रमाणका उल्लंघन करना] ये पांच परिग्रहपरिमाणुव्रतके अतिचार हैं।
दिग्वतके अतिचारऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि
अर्थ- ऊर्ध्वव्यतिक्रम [ प्रमाणसे अधिक ऊँचाई वाले पर्वतादि पर चढ़ना ], अधोव्यतिक्रम [ प्रमाणसे अधिक नीचाईवाले कुए आदिमें उतरना ], तिर्यग्व्यतिक्रम[ समान स्थानमें प्रमाणसे अधिक लम्बे जाना ], क्षेत्रवृद्धि [ प्रमाण किये हुए क्षेत्रको बढ़ा लेना] और स्मृत्वन्तराधान [किये हुए प्रमाणको भूल जाना ], ये पांच दिग्व्रतके अतिचार हैं ॥३०॥
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