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सप्तम अध्याय
[१२९ अर्थ- विधिविशेष, द्रव्यविशेष, दातृविशेष और पात्रविशेषसे उस दान में विशेषता होती है।
विधिविशेषता- नवधाभक्तिके क्रमको विधिविशेष कहते हैं।
द्रव्यविशेष- तप स्वाध्याय आदिको वृद्धिमें कारण अहारको द्रव्यविशेष कहते हैं।
दातृविशेष- श्रद्धा आदि सप्तगुण सहित दातारको दातृविशेष कहते हैं।
पात्रविशेष- सम्यकचरित्र आदि गुणसहित मुनि आदिको पात्रविशेष कहते हैं ॥ ३९॥ इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे सप्तमोऽध्यायः ।।
प्रश्रावली (१) व्रती किसे कहते है ? (२) अचौर्य व्रतकी पांच भावनाओंको समझाओ । (३) मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ्य.भावनाका क्या
स्वरूप है? (४) ईर्यासमितिसे चलनेवाला मनुष्य अकस्मात् किसी
जीवके मर जानेपर पापका भागी होगा या नहीं? (५) मूर्छाकी क्या परिभाषा है ? (६) सम्यग्दर्शनके अतिचार बतलाकर सल्लेखनाका स्वरूप
समझाओ। (७) नीचे लिखेहुये शब्दोके अर्थ बतलाओ-साकार मन्त्रभेद
विमोचितावास, कुप्य, ऊर्ध्व व्यतिक्रम,
सचितसंमिश्राहार और शल्य। (८) सक्षेपमें श्रावकोंके व्रतोंका वर्णन करो। (९) दिग्व्रत और देशव्रतमें क्या अन्तर है ? (१०) किस किस गतिमें व्रत धारण किये जा सकते है।
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