________________
पष्ठ अध्याय
[१०३ १-मूलगुण निर्वर्तना और २-उत्तरगुण निर्वर्तना। शरीर, मन तथा श्वासोच्छवासकी रचना करना मूलगुण निर्वर्तना है। और काष्ठ, मिट्टी आदिसे चित्र वगैरहकी रचना उत्तर गुण निर्वर्तना है।
निक्षेप- वस्तुके रखनेको निक्षेप कहते हैं-इसके चार भेद हैं-१अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण, २-दुःप्रमृष्ट निक्षेपाधिकरण, ३सहसानिक्षेपाधिकरण और ४-अनाभोगनिक्षेपाधिकरण हैं। बिना देखे किस वस्तुको रखना अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण हैं। यत्नाचार रहित होकर रखनेको दुःप्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण कहते हैं । शीघ्रतासे रखना सहसा निक्षेपाधिकरण है। और किसी वस्तुको योग्य स्थानमें न रखकर बिना देखे ही यहां वहां रख देना अनाभोग निक्षेपाधिकरण है।
संयोग- मिला देनेका नाम संयोग है। इसके दो भेद हैं-१भक्तपान संयोग, २-उपकरण संयोग।आहार पानीको दूसरे आहार पानीमें मिलाना भक्तपान संयोग है। और कमण्डल आदि उपकरणोंको दूसरेकी पीछी आदिसे पोंछना उपकरण संयोग है।
निसर्ग- प्रवर्तनको निसर्ग कहते हैं। इसके ३ भेद हैं। १कायनिसर्ग अर्थात् कायको प्रवर्ताना, २-वाङ्गनिसर्ग अर्थात् वचनोंको प्रवर्ताना और मनोनिसर्ग अर्थात् मनको प्रवर्तानः ॥९॥
ज्ञानावरण और दर्शनावरणके आस्त्रवतत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता
ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥१०॥
अर्थ- ज्ञान और दर्शनके विषयमें किये गये प्रदोष, निह्नव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादना और उपघात ये ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण . कर्मके आस्त्रव है।
प्रदोष- किसी धर्मात्माके द्वारा की गई तत्वज्ञानकी प्रशंसाका नहीं सुहाना प्रदोष है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org