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मोक्षशास्त्र सटीक निह्नव- किसी कारणसे ज्ञानको छुपाना निह्नव है।
मात्सर्य-वस्तु स्वरूपको जानकर यह भी पण्डित हो जावेगा ऐसा विचार कर किसीको नहीं पढ़ाना मात्सर्य है।
अन्तराय- किसीके ज्ञानाभ्यासमें विघ्न डालना अन्तराय है।
आसादन- दूसरेके द्वारा प्रकाशित होने योग्य ज्ञानको रोक देना आसादन है। उपघात- सच्चे ज्ञानको दोष लगाना उपघात हैं । ॥ १० ॥
असातावेदनीयके आस्त्रवदुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्या
त्मरोभयस्थान्यसद्वेद्यस्य ॥११॥
अर्थ- (आत्मपरोभयस्थानि) निज तथा पर दोनोंके विषयमें स्थित ( दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनानि ) दुःखशोक ताप आक्रन्दन वध और परिदेवन ये ( असद्वेद्यस्य) असातावेदनीयके आस्त्रव हैं।
दुःख- पीड़ारूप परिणामविशेषको दुःख कहते हैं।
शोक- अपना उपकार करनेवाला पदार्थका वियोग होने पर विकलता होना शोक है।
ताप- संसारमें अपनी निन्दा आदिके हो जानेसे पश्चात्ताप करना ताप है।
आक्रन्दन- पश्चात्तापसे अश्रुपात करते हुए रोना आक्रन्दन हैं। 1. यद्यपि प्रतिसमय आयु-कर्मको छोडकर शेष सात कर्मोका बन्ध हुआ करता है। तथापि प्रदोषादि भावोंक द्वारा जो ज्ञानावरणादि विशेष २ कर्मोका बन्ध होना बताया है, वह स्थितिबन्ध और अनुभाग- बन्धकी अपेक्षा समझना चाहिये । अर्थात् उस समय प्रकृति और प्रदेशबन्ध तो सब कर्मोका हुआ करता है, किन्तु स्थिति और अनुभागबन्ध ज्ञानावरणादि विशेप २ कर्मोका अधिक होता है।
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