________________
सप्तम अध्याय
अर्थ- वाग्गुप्ति-वचनको रोकना, मनोगुप्ति-मन की प्रवृत्तिको रोकना, ईर्यामिति-चार हाथ जमीन देखकर चलना, आदाननिक्षेपण समिति-भूमिको जीवरहित देखकर सावधानीसे किसी वस्तुको उठाना, रखना और आलोकितपान भोजन-देख शोधकर भोजनपान ग्रहण करना ये पांच अहिंसा व्रतकी भावनायें हैं ॥४॥
सत्यव्रतकीभावनाएँक्रोधलोभभीरूत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचि
भाषणं च पञ्च ॥५॥
अर्थ- क्रोधप्रत्याख्यान-क्रोधका त्याग करना, लोभ प्रत्याख्यानलोभ का त्याग करना, भीरूत्वप्रत्याख्यान-भयका त्याग करना, हास्यप्रत्याख्यान-हास्यका त्याग करना और अनुवीचि भाषण-शास्त्रकी आज्ञानुसार निर्दोष वचन बोलना, ये पांच सत्य व्रत की भावनायें है ॥५॥
___ अचौर्यव्रतकी भावनाएँशून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्य
शुद्धिसधर्माऽविसंवादाः पञ्च ॥६॥
अर्थ-शून्यागारावास-पर्वतोंकी गुफा, वृक्षकी कोटर आदिनिर्जन स्थानों में रहना, विमोचितावास-राजा वगैरहके द्वारा छुड़वाये हुए स्वामित्वहीन स्थानमें निवास करना, परोपरोधाकरण-अपने स्थान पर ठहरे हुए दूसरों को नहीं रोकना, भैक्ष्यशुद्धि-चरणानुयोग शास्त्रके अनुसार भिक्षाकी शुद्धि रखना और सधर्माविसंवाद-सहधर्मी भाइयोंसे यह हमारा है, वह आपका है इत्यादि कलह नहीं करना, ये पांच अचौर्य व्रतकी भावनायें हैं ॥६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org