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माक्षशास्त्र सटीक
सप्तम अध्याय शुभास्त्रवका वर्णन
व्रतका लक्षणहिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ।१ ।
____ अर्थ- हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांच पापोंसे भावपूर्वक विरक्त होना व्रत कहलाता है ॥१॥
व्रतके भेददेशसर्वतोऽगुणमहती ॥२॥ अर्थ-व्रतके दो भेद हैं- १ अणुव्रत और २ महाव्रत ।हिंसादि पापों का एकदेश त्याग करनेसे अणुव्रत और सर्वदेश त्याग करनेसे महाव्रत हैं ॥२॥
. व्रतोंकी स्थिरताके कारणतत्स्थैयार्थं भावनाः पञ्च पञ्च ॥३॥
अर्थ- उन व्रतों की स्थिरताके लिए प्रत्येक व्रतकी पांच पांच भावनायें हैं। - भावना - किसी वस्तु का बार-बार चिन्तवन करना सो भावना है ॥३॥
अहिंसाव्रतकी पांच भावनाएँवाड्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपान
भोजनानि पञ्च ॥४॥
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