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________________ १०४] मोक्षशास्त्र सटीक निह्नव- किसी कारणसे ज्ञानको छुपाना निह्नव है। मात्सर्य-वस्तु स्वरूपको जानकर यह भी पण्डित हो जावेगा ऐसा विचार कर किसीको नहीं पढ़ाना मात्सर्य है। अन्तराय- किसीके ज्ञानाभ्यासमें विघ्न डालना अन्तराय है। आसादन- दूसरेके द्वारा प्रकाशित होने योग्य ज्ञानको रोक देना आसादन है। उपघात- सच्चे ज्ञानको दोष लगाना उपघात हैं । ॥ १० ॥ असातावेदनीयके आस्त्रवदुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्या त्मरोभयस्थान्यसद्वेद्यस्य ॥११॥ अर्थ- (आत्मपरोभयस्थानि) निज तथा पर दोनोंके विषयमें स्थित ( दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनानि ) दुःखशोक ताप आक्रन्दन वध और परिदेवन ये ( असद्वेद्यस्य) असातावेदनीयके आस्त्रव हैं। दुःख- पीड़ारूप परिणामविशेषको दुःख कहते हैं। शोक- अपना उपकार करनेवाला पदार्थका वियोग होने पर विकलता होना शोक है। ताप- संसारमें अपनी निन्दा आदिके हो जानेसे पश्चात्ताप करना ताप है। आक्रन्दन- पश्चात्तापसे अश्रुपात करते हुए रोना आक्रन्दन हैं। 1. यद्यपि प्रतिसमय आयु-कर्मको छोडकर शेष सात कर्मोका बन्ध हुआ करता है। तथापि प्रदोषादि भावोंक द्वारा जो ज्ञानावरणादि विशेष २ कर्मोका बन्ध होना बताया है, वह स्थितिबन्ध और अनुभाग- बन्धकी अपेक्षा समझना चाहिये । अर्थात् उस समय प्रकृति और प्रदेशबन्ध तो सब कर्मोका हुआ करता है, किन्तु स्थिति और अनुभागबन्ध ज्ञानावरणादि विशेप २ कर्मोका अधिक होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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