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षष्ठ अध्याय
[१०७ नरक आयुका आस्त्रवबह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ॥१५॥
अर्थ- बहुत आरंभ और परिग्रहका होना नरक आयुका आस्रव हैं।॥१५॥
तिर्यंच आयुका आस्त्रवमाया तैर्यग्योनस्य ॥१६॥ अर्थ- माया ( छलकपट) तिर्यंच आयुका आस्रव है।॥१६॥
मनुष्य आयुका आस्त्रवअल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥१७॥
अर्थ- थोड़ा आरम्भ और थोड़ा परिग्रहका होना मनुष्य आयुका आस्त्रव है।॥१७॥
स्वभावमार्दवं च ॥१८॥ अर्थ- स्वभावसे ही सरल परिणामी होना भी मनुष्य आयुका आस्रव है।
नोट- इस सूत्रको पृथक लिखनेका आशय यह है कि इस सूत्रमें बताई हुई बातें देवायुके आस्त्रवमें भी कारण है ॥ १८ ॥
सब आयुओंका आस्त्रवनिःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम् ॥१९॥
अर्थ-दिग्व्रतादि ७शील और अहिंसादि पाँच व्रतोंका अभाव भी समस्त आयुओंका आस्रव है। .
नोट-शील और व्रतका अभाव कहते हुए जब कषायोंमें अत्यन्त तीव्रता और अत्यन्त मन्दता होती है तभी वे क्रमसें चारों आयुओंके - आस्रवके कारण होते है।। १९॥
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