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पंचम अध्याय
[ ९१ सत्का लक्षण उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ॥३०॥ अर्थ- जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य कर सहित हो वह सत् है।
उत्पाद- द्रव्यमें नवीन पर्यायकी उत्पत्तिको उत्पाद कहते हैं। जैसे मिट्टीको पिण्डपर्यायसे घटका।
___ व्यय- पूर्व पर्यायके विनाशको व्यय कहते हैं। जैसे घटपर्याय उत्पन्न होनेपर पिण्डपर्यायका।
ध्रौव्य-दोनों पर्यायोंमें मौजुद रहनेको ध्रौव्य कहते हैं। जैसे पिण्ड तथा घटपर्यायमें मिट्टीका॥३०॥
नित्यका लक्षणतद्भावाव्ययं नित्यम् ॥३१॥ अर्थ- जो द्रव्य तद्भावरूपसे अव्यय है वही नित्य है।
भावार्थ- प्रत्यभिज्ञानके हेतुको सद्भाव कहते हैं। जिस द्रव्य को पहले समयमें देखनेके बाद दूसरे आदि समयोंमें देखने पर यह वही है जिसे पहले देखा था ऐसा जोड़रूप ज्ञान हो वह द्रव्य नित्य हैं। परंतु यह नित्यता पदार्थमें सामान्य स्वरूपकी अपेक्षा होती है, विशेष अर्थात् पर्यायकी अपेक्षा सभी द्रव्य अनित्य हैं । इसलिये संसारके सब पदार्थ नित्यानित्य रूप हैं ॥३१॥
प्रश्र- एक ही द्रव्यमें नित्यता और अनित्यता ये दो विरूद्ध धर्म किस प्रकार रहते हैं ? समाधान
अर्पितानर्पितसिद्धेः ॥३२॥
अर्थ- विवक्षित और अविवक्षितरूपसे एक ही द्रव्यमें नाना धर्म रहते हैं। वक्ता जिस धर्मको कहनेकी इच्छा करता है उसे अर्पित-विवक्षित ' कहते हैं। और वक्ता उस समय जिस धर्मको नहीं कहना चाहता है वह
अनर्पित अविवक्षित है। जैसे वक्ता यदि द्रव्यार्थिक नयसे वस्तुका प्रतिपादन 1." निन्यं तदेवेटमिति प्रतीतेनं नित्यमन्यत्प्रतिनिगादः।
न तद्हिरु बडिग्र निनिननैमिानकयोगतम्ने ॥' समन्तभद्र।
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