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माक्षशास्त्र सटीक
साम्परायिक आश्रवके भेदइन्द्रियकषायाव्रतक्रिया: पञ्चचतुःपञ्चपञ्चविंशति
संख्याः पूर्वस्य भेदाः ॥५॥
अर्थ- स्पर्शन आदि पांच इन्द्रियां, क्रोधादि चार कषाय, हिंसादि पांच अव्रत और सम्यक्त्व आदि पच्चीस क्रियाएं, इस तरह साम्परायिक आस्रवके ३९ भेद हैं अर्थात् इन सब ३९ भेदोंके द्वारा साम्परायिक कर्मका आस्त्रव होता है।
पच्चीस क्रियाएं(१) सम्यक्त्वको बढ़ाने वाली क्रियाको सम्यक्त्व क्रिया कहते हैं जैसे
देव पूजन आदि। (२) मिथ्यात्वको बढ़ानेवाली क्रियाको मिथ्यात्व क्रिया कहते हैं, जैसे
कुदेवपूजन आदि। (३) शरीरादिसे गमनागमन रुप प्रवृति करना सो प्रयोग क्रिया है। (४) संयमीका असंयमके सन्मुख होना सो समादान क्रिया है। (५) गमनके लिए जो क्रिया होती है उसे ईर्यापथ क्रिया कहते हैं। (६) क्रोधके वशसे जो क्रिया हो वह प्रादोषिकी क्रिया है। (७) दुष्टतापूर्वक उद्यम करना सो कायकी क्रिया है। (८) हिंसाके उपकरण तलवार आदिका ग्रहण करना सो अधिकरण
क्रिया है। (९) जीवोंको दुःख उत्पन्न करनेवाली क्रियाको पारिताषिकी क्रिया
कहते हैं।
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