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मोक्षशास्त्र सटीक
षष्ठ अध्याय आस्रव तत्वका वर्णन
योगके भेद व स्वरूप
कायवाङ्मनः कर्मयोगः ॥ १ ॥
अर्थ- काय, वचन और मनकी क्रियाको योग कहते हैं । अर्थात् काय, वचन और मनके द्वारा आत्माके प्रदेशोंमें जो परि( हलन चलन ) होता है उसे योग कहते हैं। योगके तीन भेद हैं
काययोग- कायके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंमें जो हलन चलन होता है उसे काययोग कहते हैं ।
वचनयोग- वचनके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंमें जो हलनचलन होता है उसे वचनयोग कहते हैं ।
मनोयोग- मनके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंमें जो हलन चलन होता है उसे मनोयोग कहते हैं ।
इन तीनों योगोंकी उत्पत्तिमें वीर्यान्तराय कर्मका क्षयोपशम कारण है ॥ १ ॥
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आस्त्रवका स्वरूप
स आस्रवः ॥ २ ॥
अर्थ- वह तीन प्रकारका योग ही आस्रव है। जिस प्रकार कुएके भीतर पानी आनेमें झिरें कारण होती हैं उसी प्रकार आत्मामें कर्म आनेमें योग कारण हैं। कर्मोंके आनेके द्वारको आस्त्रव कहते हैं।
नोट- यद्यपि योग आस्रवके होनेमें कारण है तथापि सूत्रमें कारणमें कार्यका उपचारकर उसे आस्त्रव रुप कह दिया है । जैसे-प्राणोंकी स्थितिमें कारण होनेसे अन्न ही को प्राण कह देते हैं ॥ २ ॥
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