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पंचम अध्याय अर्थ- इन्द्रियजन्य सुख दुःख जीवन और मरण ये भी पुद्गल द्रव्यके उपकार हैं।
नोट १- इस सूत्रमें जो उपग्रह शब्दका ग्रहण किया है उससे सूचित होता है कि पुद्गल परस्परमें एक दूसरेका उपकार करते हैं जैसेराख कांसेका, पानी लोहाका, साबुन कपड़ेका आदि। .
नोट- यहां उपकार शब्दका अर्थ निमित्त मात्र ही समझना चाहिए। अन्यथा दुःख, मरण आदि उपकार नहीं कहलावेंगे ॥२०॥
जीवोंका उपकारपरस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥२१॥
अर्थ- जीवोंका परस्पर उपकार हैं अर्थात् जीव कारणवश एक दूसरेका उपकार करते है। जैसे-स्वामी सेवकका, सेवक स्वामीका, गुरु शिष्यका और शिष्य गुरुका ॥२१॥
कालका उपकारवर्तनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वेच
कालस्य ॥२२॥ अर्थ- वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्यके उपकार है।
वर्तना- जो द्रव्योंको वरतावें उसे वर्तना कहते हैं।'
परिणाम- एक धर्मके त्याग रुप और दूसरे धर्मके ग्रहणरुप जो पर्याय है उसे परिणाम कहते है। जैसे जीवोंमें ज्ञानादि और पुद्गलोंमें वर्णादि।
क्रिया- हलन चलनरुप परिणतिको क्रिया कहते हैं। 2. यद्यपि सर्व द्रव्य अपने आप वर्तते है तथापि उसके वर्तनमें जो बाह्य सहकारी कारण हो उसे वर्तना कहते है।
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