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________________ [८७ पंचम अध्याय अर्थ- इन्द्रियजन्य सुख दुःख जीवन और मरण ये भी पुद्गल द्रव्यके उपकार हैं। नोट १- इस सूत्रमें जो उपग्रह शब्दका ग्रहण किया है उससे सूचित होता है कि पुद्गल परस्परमें एक दूसरेका उपकार करते हैं जैसेराख कांसेका, पानी लोहाका, साबुन कपड़ेका आदि। . नोट- यहां उपकार शब्दका अर्थ निमित्त मात्र ही समझना चाहिए। अन्यथा दुःख, मरण आदि उपकार नहीं कहलावेंगे ॥२०॥ जीवोंका उपकारपरस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥२१॥ अर्थ- जीवोंका परस्पर उपकार हैं अर्थात् जीव कारणवश एक दूसरेका उपकार करते है। जैसे-स्वामी सेवकका, सेवक स्वामीका, गुरु शिष्यका और शिष्य गुरुका ॥२१॥ कालका उपकारवर्तनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वेच कालस्य ॥२२॥ अर्थ- वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्यके उपकार है। वर्तना- जो द्रव्योंको वरतावें उसे वर्तना कहते हैं।' परिणाम- एक धर्मके त्याग रुप और दूसरे धर्मके ग्रहणरुप जो पर्याय है उसे परिणाम कहते है। जैसे जीवोंमें ज्ञानादि और पुद्गलोंमें वर्णादि। क्रिया- हलन चलनरुप परिणतिको क्रिया कहते हैं। 2. यद्यपि सर्व द्रव्य अपने आप वर्तते है तथापि उसके वर्तनमें जो बाह्य सहकारी कारण हो उसे वर्तना कहते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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