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१८]
मोक्षशास्त्र सटीक
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ऋजुमति औरविपुलमतीमें अंतरविशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः ॥२४॥
अर्थ- (विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्याम् ) परिणामोंकी शुद्धता और अप्रतिपात-केवलज्ञान होनेके पहले नहीं छूटना, इनदो बातोंसे (तद्विशेषः)ऋजुमती और विपुलमतीमें विशेषता है।
भावार्थ- ऋजुमतीकी अपेक्षा विपुलमतीमें आत्माके भावोंकी विशुद्धता अधिक होती है। तथा ऋजुमती होकर छूट भी जाता है पर विपुलमती केवलज्ञानके पहले नहीं छूटता ऋजुमती उन मुनियोंके भी हो जाता है जो उपरके गुणस्थानोंसे गिरकर नीचे आजाते हैं परविपुलमती जिन्हें होता है उन मुनियोंका नीचेके गुणस्थानोंमें पतन नहीं होता, दोनों भेदोंमें मनःपर्यय ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमकी अपेक्षा ही हीनाधिकता रहती है मन:पर्यय ज्ञान मुनियोंके ही होता है ।। २४॥
अवधिज्ञान औरमनःपर्ययज्ञानमें विशेषताविशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्यययोः ॥२५॥
___ अर्थ- (अवधिमनः पर्यययोः) अवधि और मनःपर्ययज्ञानमें (विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्यः) विशुद्धता, क्षेत्र, स्वामि' और विषयकी अपेक्षा (विशेषः भवति)विशेषता होती है।
भावार्थ- विशुद्धि आदिकी न्यूनाधिकतासे अवधि और मनःपर्ययज्ञानमें भेदहोता है ॥ २५ ॥
1. मन:पर्ययज्ञान उत्तम ऋद्धिधारी मुनियोंको ही होता है, पर अवधिज्ञान चारों गतियोंके जीवोंको हो सकता हैं।
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