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३४॥
मोक्षशास्त्र सटीक
द्रव्येन्द्रियका स्वरूपनिर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥१७॥ अर्थ-निर्वृति और उपकरणको द्रव्येन्द्रिय कहते हैं ।
निर्वृति- पुद्गलविपाकी नामकर्मके उदयसे निर्वृत्त-रची गई नियत आकारवाली पुद्गलकी रचनाविशेषको निर्वृति कहते हैं। इसके २ भेद हैं-१-आभ्यन्तरनिर्वृति और २-बाह्य निर्वृति । उत्सेधांगुलके असंख्येय भाग प्रमाण शुद्ध आत्माके प्रदेशोंका चक्षु आदि इन्द्रियोंके आकार होनेवाले परिणमनको आभ्यन्तर निर्वृति कहा हैं, तथा इन्द्रिय व्यपदेशको प्राप्त हुए आत्माके उन प्रदेशोंमे नामकर्मके उदयसे होनेवाले चक्षु आदि इन्द्रियोंके आकार परिणत पुद्गल प्रचयको बाह्य निर्वृति कहते हैं।
उपकरण- जो निर्वतिका उपकार करे उसे उपकरण कहते हैं, इसके भी दो भेद हैं-१ आभ्यन्तर उपकरण और २ बाह्य उपकरण जैसे चक्षु इन्द्रियमें जो कृष्ण-शुक्ल मण्डल हैं वह आभ्यन्तर उपकरण है और पलकें तथा बिरूनी वगैरह बाह्य उपकरण हैं ॥१७॥
भाव इन्द्रियका स्वरूपलब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥१८॥ अर्थ- लब्धि और उपयोगको भावेन्द्रिय कहते हैं । लब्धि- ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम विशेषको लब्धि कहते हैं
उपयोग- जिसके निमित्तसे आत्मा द्रव्येन्द्रियकी निर्वृतिके प्रति व्यापार करता है उस निमित्तसे होनेवाले आत्माके परिणामको उपयोग कहते हैं ॥१८॥
पञ्च इन्द्रियोंके नामस्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥१९॥
अर्थ- स्पर्शन ( त्वचा) रसना ( जीभ) घ्राण ( नाक) चक्षुः (आंख) और क्षोत्र ( कान ) ये पांच इन्द्रियां हैं ॥१९॥
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