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मोक्षशास्त्र सटाक सुषमा-व्यालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर, ५ दुःषमा-इक्कीस हजार वर्ष ६-अतिदःषमा-इक्कीस हजार वर्ष । भरत और ऐरावत क्षेत्रमें इन छह भेदों सहित उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीका परिवर्तन होता रहता है। असंख्यात अवसर्पिणी बीत जानेके बाद एक हुण्डावसर्पिणी काल होता है। अभी हुण्डावसर्पिणी काल चल रहा है।। २७॥
नोट- भरत और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी म्लेच्छखण्डों तथा विजयार्ध पर्वत की श्रेणियोंमें अवसर्पिणी कालके समय चतुर्थकालके आदिसे लेकर अन्त तक परिर्वतन होता है, और उत्सर्पिणी काल के समय तृतीय कालके अन्तसे लेकर आदि तक परिवर्तन होता है। इनमें आर्यखंडोकी तरह छहों कालोंका परिवर्तन नहीं होता है और न इनमें प्रलयकाल पड़ता है।
- अन्य भूमियोंकी व्यवस्थाताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ॥२८॥
अर्थ- ( ताभ्याम् ) भरत और ऐरावतके सिवाय(अपराः) अन्य ( भूमयः) क्षेत्र ( अवस्थिता: ) एक ही अवस्थामें रहते हैं-उनमे कालका परिवर्तन नहीं होता ।। २८ ॥
हैमवत आदि क्षेत्रों में आयुकी व्यवस्था
एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदैवकुरवकाः ॥२९॥
अर्थ- हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरू ( विदेह क्षेत्रके अन्तर्गत एक विशेष स्थान ) के निवासी मनुष्य तिर्यञ्च क्रमसे एक पल्य दो पल्य और तीन पल्यकी आयुवाले होते है । ॥ २९ ॥ 1. इन तीन क्षेत्रो में मनुष्यों के शरीरकी ऊँचाई क्रममं एक दो और तीन कोशकी होती हैं । शरीरका रंग क्रमसे नील. शुक्न और पीत होता है। दो हजार धनुषका एक कोश होता है और चार हाथका एक धनुष होता है । शरीर की अवगाहना छोटे यांजन से होती है। चार कोशका छोटा योजन होता है ।
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