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मोक्षशास्त्र सटीक विशेषार्थ- पहले और दूसरे स्वर्गमें पीतलेश्या, तीसरे और चौथे स्वर्गमें पीत और पद्म लेश्या, पांचवे, छठवें, सातवें आठवें स्वर्गमें पद्मलेश्या, नवमें, दशमें, ग्यारहवें और बारहवें स्वर्गमें पद्म और शुक्ललेश्या तथा शेष समस्त विमानोंमें शुक्ललेश्या है। अनुदिश और अनुत्तरके १४ विमानोंमें परम शुक्ललेश्या होती है ॥ २२॥
कल्पसंज्ञा कहांतक है ? प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥२३॥
अर्थ- (ग्रैवेयकेभ्यः प्राक् ) ग्रैवेयकोंसे पहले यहलेके १६ स्वर्ग [कल्पाः] कल्य कहलाते हैं इससे आगेके विमान कल्पातीत हैं। नवग्रैवेयक वगेरहके देव एकसमान वैभवके धारी होते हैं और वे अहमिन्द्र कहलाते हैं ॥२३॥
लौकान्तिक देवब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः ॥२४॥
अर्थ:ब्रह्मलोक [ पांचवां स्वर्ग] है आलय [निवासस्थान] जिनका ऐसे लौकान्तिक देव हैं ।
नोट-ये देव ब्रह्मलोकके अन्तमें रहते हैं अथवा एक भवावतारी होनेसे लोक [ संसार ] का अन्त [ नाश ] करनेवाले होते हैं । इसलिये लौकान्तिक कहलाते हैं । येद्वादशांगके पाठी होते है, ब्रह्मचारी रहते हैं और तीर्थंकरोंके सिर्फ तपकल्याणकमें आते हैं । इन्हे 'देवर्षि' भी कहते हैं ।
लौकान्तिक देवोंके नामसारस्वतादित्यवह्नयरूणगर्दतोयतु
षिताव्याबाधारिष्टाश्च ॥२५॥
अर्थ-१ सारस्वत, २ आदित्य, ३ वह्नि, ४ अरूण, ५ गदंतोय, ६ तुषित, ७ अव्याबाध और ८ अरिष्ट ये आठ लौकान्तिक देव हैं । वे ब्रह्मलोकका ऐशान आदि आठ दिशाओं में रहते हैं ॥ २५ ॥
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