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मोक्षशास्त्र पटाक भावार्थ- भरतक्षेत्रका विस्तार 526; योजन हैं ॥ ५४॥'
आगेके क्षेत्र और पर्वतोंका विस्तारतद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा
विदेहान्ताः ॥२५॥ अर्थ- (विदेहान्ताः) विदेहक्षेत्र पर्यन्तके ( वर्षधरवर्षाः) पर्वत और क्षेत्र ( तद्विगुणद्विगुणाः) भरतक्षेत्रसे दूने दूने विस्तारवाले हैं ॥२५॥ विदेह क्षेत्रके आगेके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार
उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥२६॥
अर्थ- विदेहक्षेत्रसे उत्तरके तीन पर्वत और तीन क्षेत्र दक्षिणके पर्वत और क्षेत्रों के समान विस्तारवाले है।
इनका क्रम इस प्रकार हैक्षेत्र और पर्वत
विस्तार ऊचाई गहराई भरत क्षेत्र
526 :- योजन हिमवत् कुलाचल
1052
१००यो. २५यो. हैमवत् क्षेत्र
2105 - " + + महाहिमवत् कुलाचल हरिक्षेत्र
8421 निषध कुलाचल 16842: '' ४००यो. १००यो.
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42101
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1. भरत और ऐरावत क्षेत्र के बीचमें पूर्व व पश्चिम तक लम्बे विजयाधं पवंत है। जिनसे गङ्गा सिंधु और रक्तारक्तोदा नदियोंके कारण दोनों क्षेत्रोंके छह छह खण्ड हो जाते है। उनमें बीचका आयखण्ड और शंषक पाँच म्लेच्छखण्ड कहलाते है । दीर्थङ्कर आदि पदवीधार्ग पुरुप भरत. गंगवनक आयखण्डगं और विदह क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं।
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