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चतुर्थ अध्याय
[६९ अर्थ- ऊपर कहे हुए ज्योतिष्कदेव ( नृलोके) मनुष्यलोकमें [ मेरूप्रदक्षिणा: ] मेरू पर्वतकी प्रदक्षिणा देते हुए [नित्यगतयः ] हमेशा गमन करते रहते है ' ॥१३॥
तत्कृतः कालविभागः ॥१४॥
अर्थ- [कालविभागः] घडी घण्टा दिन रात आदि व्यवहारकालका विभाग [ तत्कृतः] उन्ही गतिशील ज्योतिष्क देवोंके द्वारा किया गया है ॥१४॥
बहिरवस्थिताः ॥१५॥ अर्थ- मनुष्यलोक-अढ़ाईद्वीपसे बाहरके ज्योतिष्क देव स्थिर हैं ॥१५॥
वैमानिक देवोंका वर्णन
वैमानिकाः ॥१६॥ अर्थ- अब यहांसे वैमानिक देवोंका वर्णन शुरू होता है।
विमान- जिसमें रहनेवाले देव अपनेको विशेष पुण्यात्मा समझें उन्हें विमान कहते है और विमानोंमें जो पैदा हों उन्हें वैमानिक कहते हैं ॥१६॥
वैमानिक देवोंके भेदकल्पोपपन्नाः कल्पातोताश्च ॥१७॥ __ अर्थ- वैमानिक देवोंके दो भेद हैं-१-कल्पोपपन्न और २कल्पातीत। जिनमें इन्द्र आदि दश भेदोंकी कल्पना होती हैं ऐसे सोलह स्वर्गोको कल्प कहते है, उनमें जो पैदा हों उन्हे कल्पोपपन्न कहते है। और जो सोलहवें स्वर्गसे आगे पैदा हों उन्हें कल्पातीत कहते हैं ॥१७॥ 1. जम्बूद्वीपमें २, लवणसमुद्रमें ४, धातकीखण्डमें १२, कालोदधिमें ४२ और पुष्कराद्धम ७२ सूर्य तथा इतनेही चंद्रमा हैं।
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