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द्वितीय अध्याय
[ ३५ इन्द्रियोंकेविषयस्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥२०॥
अर्थ- स्पेश, रस, गन्ध, रुप और शब्द ये पांच क्रमसे उपर कही हुई पांच इन्द्रियों के विषय हैं। अर्थात् उक्त इन्द्रियां इस विषयोंको जानती है
॥२०॥
मनका विषयश्रुतमनिन्द्रियस्य ॥२१॥ अर्थ- ( अनिन्द्रियस्य) मनका विषय ( श्रुतम् ) श्रुतज्ञानगोचर पदार्थ है। अथवा मनका प्रयोजन श्रुतज्ञान है ॥२१॥
नोट- सामान्य श्रुतज्ञान मनसहित और मन रहित दोनों प्रकारके जीवोंके होता है यहां शास्त्र ज्ञान रूप जो श्रुत है उसे मनका विषय कहा गया हैं।
इन्द्रियोंके स्वामीवनस्पत्यन्तानामेकम् ॥२२॥
अर्थ- ( वनस्पत्यन्तानाम् ) वनस्पतिकाय है अन्तमें जिनके ऐसे जीवोंके अर्थात् पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवोंके ( एकम् ) एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है।॥२॥ कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैक
वृद्धानि ॥२३॥ अर्थ- लट आदि, चिऊंटी आदि, भौंरा आदितथा मनुष्य आदिके क्रमसे एक-एक इन्द्रिय बढ़ती हुई हैं। अर्थात् लट आदिके प्रारम्भकी दो, चिउँटी आदिके तीन, भौंरा आदिके चार और मनुष्य आदिके पांचों इन्द्रियां होती हैं ॥२३॥
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