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द्वितीय अध्याय हैं। अर्थात् आहारक शरीरसे अनन्तगुणे प्रदेश तैजस शरीरमें और तैजस शरीरकी अपेक्षा अनन्तगुणे प्रदेश कार्मण शरीरमें हैं।' तैजस और कार्मण शरीरकी विशेषता- .
अप्रतिघाते ॥४०॥ अर्थ-तैजस और कार्मण ये दोनों शरीर अप्रतिघात-बाधारहित हैं अर्थात् किसी भी मूर्तिक पदार्थसे न स्वयं रूकते हैं और न किसीको रोकते हैं।
अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥
अर्थ- ये दोनों शरीर आत्माके साथ अनादिकालसे सम्बन्ध रखनेवाले हैं।
नोट- यह कथन सामान्य तैजस और कार्मणकी अपेक्षासे है, विशेषकी अपेक्षा पहलेके शरीरोंका सम्बन्ध नष्ट होकर उनके स्थानमें नये नये शरीरोंका सम्बन्ध होता रहता है।
सर्वस्य ॥४२॥ अर्थ- ये दोनों शरीर समस्त संसारी जीवोंके होते हैं ॥४२॥
एकसाथ एक जीवके कितने शरीर हो सकते हैं ? तदादीनि भाज्यानियुगपदेकस्याचतुर्व्यः॥४३॥
अर्थ- (तदादीनि) उन तैजस और कार्मण शरीरको आदि लेकर ( युगपद् ) एकसाथ( एकस्य) एक जीवके ( आचतुर्थ्यः) चार शरीर तक ( भाज्यानि)विभक्त करना चाहिए ।अथात् दो शरीर हों तो तैजस कार्मण, तीन हों तो तैजस कार्मण और औदारिक अथवा तैजस कार्मण और
१. आगे आगेके शरीरोमें प्रदेशोंकी अधिकता होनेपर भी उनका सन्निवेश लोहपिण्डकी तरह सघन होता है इसलिये वे बाह्यमें अल्परूप होते है।
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