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प्रथम अध्याय
संग्रह नय- जो नयअपनी जातिका विरोध न करता हुआ एकपनेसे समस्त पदार्थोको ग्रहण करता है उसे संग्रह नयकहते हैं। जैसे सत्, द्रव्य, घट . इत्यादि।
व्यवहार नय- जो नय संग्रह नयके द्वारा ग्रहण किये हुए पदार्थोको विधिपूर्वक भेद करता है वह व्यवहार नय है। जैसे सत् दो प्रकारका हैद्रव्य और गुण। द्रव्यके ६ भेद हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल।गुणके दो भेद हैं-सामान्य और विशेष। इस तरह यह नय वहां तक भेद करता जाता है जहां तक भेद हो सकते हैं।
ऋजुसूत्र नय- जो सिर्फ वर्तमान कालके पदार्थोको ग्रहण करे उसे ऋजुसूत्र नय कहते हैं।
शब्द नय- जो नय लिङ्ग संख्या कारक आदिके व्यभिचारको दूर करता है वह शब्द नय है। यह नय लिङ्गादिके भेदसे पदार्थको भेदरूप ग्रहण करता है। जैसे दार(पु.) भार्या ( स्त्री० ) कलत्र (न० ) ये तीनों शब्द भिन्न लिङ्गवाले होकर भी एक ही स्त्री पदार्थके वाचक है पर यह नय स्त्री पदार्थको लिङ्गके भेदसे तीन रूप मानता है।
समभिरूड नय- जो नय नाना अर्थोंका उलङ्घन कर एक अर्थको रूढ़िसे ग्रहण करता है उसे समभिरूड़ नय कहते हैं। जैसे वचन आदि अनेक ' अर्थोका वाचक गौ शब्द किसी प्रकरणमें गाय अर्थका वाचक होता है। यह नय पर्यायके भेदसे अर्थको भेदरूप ग्रहण करता है। जैसेइन्द्र शक्र पुरन्दर ये तीनो शब्द इन्द्रके नाम हैं पर यह नय इन तीनोंके भिन्न 1. गौः पुमान् वृषभेस्वर्गे खण्डवज्रहिमांशुषु। स्त्री गबि भूमिदिग्नेत्रबाग्बाणसलिले स्त्रियः॥
इति विश्वलोचनः। गौःशब्दके ११ अर्थ है - १ बल, २ स्वर्ग,३ खण्ड, ४ वज्र, ५ चन्द्रना, ६ गाय, ७ भूमि, ८ दिशा, ९ नेत्र, १० वाणी (स्त्री) और ११ जल (स्त्री बहुवचनांत।)
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