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मानशास्त्र सटांक
अवधिज्ञानका वर्णनभवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम् ॥२१॥
अर्थ- ( भवप्रत्ययः) भवप्रत्यय नामका ( अवधिः) अवधिज्ञान ( देवनारकाणाम् ) देव और नारकियोंके होता हैं।
___ भावार्थ- अवधिज्ञानके दो भेद हैं-भवप्रत्यय और २ गुणप्रत्यय (क्षायोपशमिक)
भवप्रत्यय-देव और नरक भव ( पर्याय ) के कारण जो उत्पन्न हो उसे भवप्रत्यय कहते हैं।
गुणप्रत्यय- जो किसी पर्याय-विशेषकी अपेक्षा न रखकर अवधिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे होवे उसे गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान कहते हैं।
नोट-यहांइतना स्मरण रखना चाहिये कि भवप्रत्यय अवधिज्ञानमें भी अवधिज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम रहता है। पर वह क्षयोपशम देव और नरक पर्यायमें नियमसे प्रकट हो जाता है।
क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञानके भेद और स्वामीक्षयोपशमनिमित्तःषड्विकल्पःशेषाणाम् ।२२।
अर्थ- (क्षयोपशमनिमित्तः) क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान ( षड्विकल्पः ) अनुगामी, अननुगामी वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित, इस प्रकार छह भेदवाला है और वह ( शेषाणाम् ) मनुष्य तथा तिर्यञ्चोके ( भवति ) होता है।
अनुगामी- जो अवधिज्ञान सूर्यके प्रकाशकी तरह जीवके साथसाथ जावे उसे अनुगामी कहते हैं। इसके तीन भेद हैं-१-क्षेत्रानुगामी, 1. तिर्थंकरोंके भी भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है । 2. सम्यग्दृष्टि देव नारकियोंके अवधि और मिथ्याद्दष्टि देव नारकियोंके कुअवधि होता
है
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