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माक्षशास्त्र सटीक मतिज्ञानकी उत्पत्तिका कारण और स्वरूपतदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥१४॥
अर्थ- (तत्) वह मतिज्ञान (इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ) पांच इन्द्रिय और मनके निमित्तसे होता है ॥१४॥
मतिज्ञानके भेदअवग्रहेहावायधारणाः ॥१५॥ ... अर्थ- मतिज्ञानके अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार भेद है।
अवग्रह- दर्शनके बाद शुक्ल कृष्ण आदि रूपविशेषका ज्ञान होना अवग्रह है।
ईहा- अवग्रहके द्वारा जाने हुए पदार्थको विशेषरूपसे जाननेकी चेष्टा करना ईहा है। जैसे-वह शुक्लरूप बगुला है या पताका ईहा ज्ञानको "यह चांदी है या सीप' इत्यादिकी तरह संशयरूप नहीं समझना चाहिए, क्योंकि संशयमें अनिश्चित अनेक कोटियोंका अवलंबन रहता है जो कि यहां नहीं है यहां बगुलाका और पताकाका कथन दो उदाहरणोंकी अपेक्षा है। उसका स्पष्ट भाव यह है-यदी यह बगुला है तो बगुला होना चाहिये।
और यदि पताका है तो पताका होना चाहिये। ईहामें भवितव्यतारूपं प्रत्यय ज्ञान होता है।
अवाय- विशेष चिह्न देखनेसे उसका निश्चय हो जाना सो अवाय है। जैसे-उस शुक्ल पदार्थमें पंखोंका फड़फड़ाना उड़ना आदि चिह्न देखनेसे बगुलाका निश्चय होना।
2. छद्मस्थ जीवोंके ज्ञानसे पहले दर्शन होता है। किसी वस्तुकी सत्ता मात्रके देखनेको दर्शन कहते है। इसका विषय बहुत सूक्ष्म होता है जो कि उदाहरणसे नहीं समझाया जा सकता।
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