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प्रथम अध्याय
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प्रत्यक्ष प्रमाणके भेद
प्रत्यक्षमन्यत् ॥१२॥ अर्थ- ( अन्यत् ) शेष तीन अर्थात् अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान ( प्रत्यक्षम् ) प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ॥ १२ ॥
मतिज्ञानके दूसरे नाममतिः स्मृतिः संज्ञाचिन्ताभिनिबोधइत्य
नर्थान्तरम्॥१३॥ अर्थ- मति, स्मृति, संज्ञा, चिंता और अभिनिबोध इत्यादि अन्य पदार्थ नहीं हैं अर्थात् मतिज्ञानके ही नामान्तर हैं।
मति- मन और इन्द्रियोंसे वर्तमानकालके पदार्थोका जानना मति है।
स्मृति- पहले जाने हुए पदार्थका वर्तमानमें स्मरण आनेको स्मृति कहते हैं।
संज्ञा- वर्तमानमें किसी पदार्थको देखकर यह वही है' इस प्रकार स्मरण और प्रत्यक्षके जोड़प ज्ञानको संज्ञा कहते हैं। इसीका दूसरा नाम 'प्रत्यभिज्ञान' है।
चिंता- 'जहां जहां धूम होता है वहां वहां अग्नि अवश्य होती हैजैसे रसोईघर' इस प्रकारके व्याप्ति ज्ञानको चिंता कहते हैं।
अभिनिबोध- साधनसे साध्यका ज्ञान होनेको अभिनिबोध कहते हैं-जैसे उस पहाड़ में अग्नि है, क्योंकि उसपर धूम है' इसीका दूसरा नाम 'अनुमान' है।' 1. ये सब ज्ञान मतिज्ञानावरण कमके क्षयोपशममं होते है इसलिये निमिन सामान्यकी अपेक्षासे सबको एक कहा है परन्तु इन सबमें स्वरूप भेद- अर्थभेद अवश्य है।
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