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मेवाड़ के जैन तीर्थ भाग 2
11. महाकवि श्री दइढ़ा- इनका भी प्राग्वाट कुल में चित्तौड़ में ही जन्म हुआ। इन्होंने
प्राकृत भाषा निबद्ध पंच संग्रह की रचना की। श्री सोमसुन्दरसूरि - इन्होंने देलवाड़ा में कई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई व कई अन्य रचनाएं लिखी तथा चित्तौड़ के महावीर जैन मंदिर का पुनरूद्धार (जिर्णोद्धार) कार्य किया। मुनि श्री राजसुन्दर - इन्होंने चित्तौड़ में रहते हुए वि.स. 1558 में महावीर स्तवन की
रचना की। 14. मुनि श्रीराजशील - खरतरगच्छ के मुनि हर्ष के शिष्य थे तथा इन्होंने चित्तौड़ में
रहते हुए “विक्रम खापर चरित्र'' चौपाई की रचना की। श्री पार्श्वचन्द्रसूरि - इन्होंने जैन धर्म की शिक्षा में ही सारा जीवन व्यतीत किया। इनकी अनेक रचनाएं विद्यमान है तथा चित्तौड़ में चैत्य परिपाटि का सृजन किया। मनि श्री गजेन्द्र प्रमोद- तपागच्छीय श्री हेमविमलसूरि के शिष्य मुनि हर्ष प्रमोद के शिष्य थे। ये महाराणा सांगा के राज्य काल में थे उन्होंने चित्तौड़ चैत्य परिपाटी की रचना की। श्री लालचंदलब्धोदय - ये चित्तौड़ के ही निवासी थे। अपने समय के उच्च कोटि के विद्वान थे। जिन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की। सति श्वेता या खेतकर खरतरगच्छीय कवि दयावल्लभ की शिष्या थी - इन्होंने वि.स. 1748 में चित्तौड़ गजल की रचना की। मुनि श्री प्रतिष्ठा सोम - इनकी प्रमुख रचना कथा महोदधि व सोम सौभाग्य काव्य है, जिसमें सोमसुन्दर सूरि के जीवन का वर्णन है। मुनि श्री चरित्ररत्नमणि - चित्तौड़ के महावीर जैन मंदिर की प्रशस्ति 104 श्लोकों में इन्होनें सं. 1495 में बनाई जो हस्तलिखित थी, जो भण्डारकर ओरियन्टल इंस्टीट्यूट पूना में थी जो सन् 1908 में प्रकाशित हुई। ये संस्कृत का सुन्दर काव्य है जिसमें चित्तौड़ की प्रशस्ति का वर्णन किया है। इन्होंने ज्ञान प्रदीप पद्यबद्ध ग्रन्थ भी चित्तौड़ में ही पूर्ण किया।
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