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महावीर वाणी भाग 2
आपने मारने के लिए न जाने, न अनजाने कोई चेष्टा की होती, आपने सब भांति अपने होश को संभालकर कदम उठाया होता, फिर चींटी मर जाती, वह चींटी जाने, प्रकृति जाने, आप जिम्मेदार नहीं थे। आप जो कर सकते थे, वह किया था ।
लेकिन आप बेहोशी से चल रहे हैं। आपको पता ही नहीं कि आप चल रहे हैं। आपको यह पता ही नहीं कि पैर आपका कहां पड़ रहा है, क्यों पड़ रहा है? आपका सिर कहीं आसमान में घूम रहा है, पैर जमीन पर चल रहे हैं। आप मौजूद यहां हैं शरीर से, मन कहीं और है।
यह जो बेहोश चलना है, इसमें जो चींटी मर रही है, उसमें आप जिम्मेदार हैं। वह जिम्मेदारी बेहोशी की जिम्मेदारी है, चींटी के मरने की नहीं। चींटी तो आपके होश में भी मर सकती है, लेकिन तब जिम्मेदारी आपकी नहीं ।
महावीर चालीस साल जीये, और यह बड़ी गहन चिंतना का विषय रहा है, तत्व- दार्शनिकों को, तत्वज्ञों को, कि महावीर को ज्ञान हुआ, उसके बाद वह चालीस साल जिंदा थे। तो कर्म तो कुछ किया ही होगा। इन चालीस सालों में जो कर्म किया, उसका बंधन महावीर पर हुआ या नहीं? कितना ही कम किया हो, कुछ तो किया ही होगा, उठे होंगे, बैठे होंगे, नहीं उठे, नहीं बैठे, सांस तो ली होगी। सांस लेने में भी तो जीवाणु मर रहे हैं, लाखों मर रहे हैं। एक श्वास में कोई एक लाख जीवाणु मर जाते हैं। बहुत छोटे हैं, सूक्ष्म हैं।
और जब महावीर ने पहली दफे इनकी बात कही थी तो लोगों को भरोसा नहीं आया कि सांस में कहां के जीवाणु। लेकिन अब तो विज्ञान कहता है कि वे हैं, और महावीर ने जितनी संख्या बतायी थी, उससे ज्यादा संख्या है।
आपके खयाल में नहीं है, आप एक चुंबन लेते हैं तो एक लाख जीवाणु मर जाते हैं। दो ओठों के संस्पर्श के दबाव में एक लाख जीवाणु मर जाते हैं । यह वैज्ञानिक कहते हैं। महावीर ने तो बहुत पहले इशारा किया था कि श्वास लेते हैं तो भी जीवाणु मर जाते हैं।
इसलिए आप जानकर हैरान होंगे कि महावीर ने प्राणायम जैसी क्रियाओं को जरा भी जगह नहीं दी। यह हैरानी की बात है। क्योंकि योग प्राणायाम पर इतना जोर देता हो, उसके कारण बिलकुल दूसरे हैं। लेकिन महावीर ने बिलकुल जोर नहीं दिया। क्योंकि इतने जोर श्वास का लेना, छोड़ना, महावीर को लगा, अकारण हिंसा को बढ़ा देना हो जायेगा ।
इसलिए महावीर उतनी ही श्वास लेते हैं जितने के बिना नहीं चल सकता, जितने के बिना नहीं चल सकता । श्वास लेने में भी महावीर होश में हैं, जिसके बिना नहीं चल सकता है। अनिवार्य है जो होने के लिए, बस उतनी ही श्वास, वह भी होश में हैं वह, इसलिए दौड़ते नहीं कि श्वास तेज न हो जाये । चिल्लाते नहीं कि श्वास तेज न हो जाये। उतना ही बोलते हैं जितना अपरिहार्य है । चुप रह जाते हैं। क्योंकि
कुछ भी हम कर रहे हैं उसमें अगर बेहोशी है, तो हिंसा हो रही है।
पर फिर भी महावीर बोले, फिर भी महावीर चले। नहीं कुछ किया तो श्वास तो ली। रात जमीन पर लेटे तो, शरीर का वजन पड़ा होगा। जब एक चुंबन में एक लाख कीटाणु मर जाते हैं, तो जब आदमी जमीन पर लेटेगा, कितना ही साफ-सुथरा करके लेटे करोड़ों कीटाणु मर जायेंगे, करोड़ों जीवाणु मर जायेंगे ।
महावीर रात करवट नहीं लेते हैं, फिर भी एक करवट तो लेनी ही पड़ेगी, सोते वक्त। एक बार तो पृथ्वी छूनी ही पड़ेगी।
महावीर रात में करवट नहीं बदलते कि बार-बार बहुत सी हिंसा अकारण है। एक करवट काम चल जाता है तो बस एक करवट काफी है। एक ही करवट सोये रहते हैं। फिर भी एक करवट तो सोते ही हैं ।
आप ज्यादा हिंसा करते होंगे, वे कम करते हैं, लेकिन नहीं करते हैं ऐसा तो दिखायी नहीं पड़ता। तो सवाल है कि महावीर ने चालीस साल में इतनी हिंसा की, उसका कर्म - बंधन अगर हुआ हो तो फिर वह मोक्ष कैसे जा सकते हैं? उनका पुनर्जन्म होगा। उतना बंधन, उतना संस्कार फिर जीवन में ले आयेगा। लेकिन नहीं कोई कर्म बंधन नहीं होता क्योंकि महावीर की कर्म की परिभाषा हम समझ लें ।
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