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विकास की ओर गति है धर्म
छिपा हुआ भगवान है। आज नहीं कल, वह भी प्रगट होगा। वृक्ष में जो है, वह भी भगवान है। आज नहीं कल, वह भी प्रगट होगा। समय की भर देर है । एक घड़ी जो भी छिपा है, वह प्रगट हो जायेगा। __ अनंत भगवानों की धारणा दुनिया में कहीं भी नहीं है । और उस के पीछे भी व्यक्ति का मूल्य है। महावीर को यह खयाल दुखद मालूम पड़ता है कि एक ब्रह्म है, जो सबका मालिक है। यह बात ही तानाशाही की मालूम पड़ती है । यह भी बात महावीर को उचित नहीं मालूम पड़ती कि 'उस एक' में ही सब खो जायेंगे। यह भी बात उचित नहीं मालूम पड़ती कि 'उस एक' ने सबको बनाया है, वह एक' सृष्टा है। यह बात बेहदी है। __क्योंकि महावीर कहते हैं कि अगर मनुष्य की आत्मा बनाई गई है तो वह आत्मा ही न रही, वस्तु हो गई। जो बनाई जा सकती है, वह क्या आत्मा है। महावीर कहते हैं, जो बनाई जा सकती है वह वस्तु है, आत्मा नहीं। इसलिए अगर किसी परमात्मा ने आत्माएं बनाई हैं, तो वे सब वस्तुएं हो गईं। फिर हम परमात्मा के हाथ की गुड्डियां हो गये, कोई मूल्य न रहा। __महावीर इसलिए सृष्टा की धारणा को अस्वीकार कर देते हैं । वे कहते हैं, कोई सृष्टा नहीं। क्योंकि अगर सृष्टा है तो आत्मा का मूल्य नष्ट हो जाता है । आत्मा का मूल्य ही यही है कि वह असृष्ट है, अनक्रिएटेड है। उसे बनाया नहीं जा सकता। जो भी चीज बनाई जा सकती है, वह वस्तु होगी, यंत्र होगी-कुछ भी होगी-लेकिन जीवंत चेतना नहीं हो सकती।
थोड़ा सोचें । जीवंत चेतना अगर बनाई जा सके, तो उसका मूल्य, उसकी गरिमा, उसकी महिमा-सब खो गयी। इसलिए महावीर कहते हैं, कोई सृष्टा परमात्मा नहीं है। फिर महावीर कहते हैं, जो बनाई जा सकती है, वह नष्ट भी की जा सकती है।
मा जा सकता है. वह मिटाया जा सकता है। अगर कोई परमात्मा है आकाश में जिसने कहा बन जाओ और आत्माएं बन गईं, वह किसी भी दिन कह दे कि मिट जाओ और आत्माएं मिट जाएं, तो यह मजाक हो गया, जीवन के साथ व्यंग हो गया। इसलिए महावीर कहते हैं, न तो आत्मा बनाई जा सकती और न मिटाई जा सकती। जो न बनाया जा सकता, जो न मिटाया जा सकता, उसको महावीर 'द्रव्य' कहते हैं-सब्सटेन्स ।
यह उनकी परिभाषा को समझ लेना आप। द्रव्य उसको कहते हैं, जो न बनाया जा सकता और न मिटाया जा सकता है जो है। इसलिए महावीर कहते हैं, जगत में जो भी मल द्रव्य हैं, वे हैं सदा से। उनको किसी ने बनाया नहीं है और नहीं सकेगा।
आधुनिक विज्ञान महावीर से राजी है । जैनों की वजह से महावीर का विचार वैज्ञानिकों तक नहीं पहुंच पाता, अन्यथा आधुनिक विज्ञान जितना महावीर से राजी है, उतना किसी से भी राजी नहीं है। अगर आइंस्टीन को महावीर की समझ आ जाती तो आइंस्टीन महावीर की जितनी प्रशंसा कर सकता था, उतनी कोई भी नहीं कर सकता है। लेकिन जैनों के कारण बड़ी कठिनाई है।
एक मित्र मेरे पास आए थे। महावीर की पच्चीस-सौवीं वर्ष गांठ आती है। वे मुझसे कहने लगे कि 'किस भांति हम इसको मनाएं कि सारे जगत को महावीर के ज्ञान का प्रसार मिल जाए ?' तो मैंने उनको कहा कि 'आप जब तक हैं, तब तक बहुत मुश्किल है। आप ही उपद्रव हैं, आप ही बाधा हैं।' ___ महावीर विराट हो सकते हैं, लेकिन जैनों का बड़ा संकीर्ण घेरा है और जैनों की संकीर्ण बुद्धि के कारण महावीर की जो तस्वीर दुनिया के सामने आती है, वह बड़ी संकीर्ण हो जाती है । महावीर का खुलकर अध्ययन भी नहीं हो पाता । बंधी लकीरोंवाले लोग कुछ भी नहीं खोज सकते । महावीर की पुनः खोज की जरूरत है, लेकिन तब बंधी लकीरें तोड़ देनी पड़ेंगी।
महावीर की यह धारणा कि 'द्रव्य' उसको कहते हैं, महावीर जिसे आज विज्ञान ‘एलिमेंट' कहता है । वह कभी नष्ट नहीं होता और
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