________________
महावीर-वाणी भाग : 2
है, वह अनुभव में नहीं आयेगा। और हम चित्त की तरंगों से ही उलझे रह जाते हैं, अटके रह जाते हैं, अंतर्यात्रा नहीं हो पाती। __अनंत हैं ये लेश्याएं, अनंत हैं ये तरंगें लेकिन महावीर कहते हैं, उनके छह रूप हैं । और छह रूप बड़े वैज्ञानिक हैं। और अब विज्ञान भी सिद्ध कर रहा है कि महावीर ने जिस ढंग से इन लेश्याओं का वर्गीकरण किया है, शायद वही एक मात्र आधार है वर्गीकरण करने का, और कोई आधार नहीं हो सकता।
महावीर ने रंग के आधार पर वर्गीकरण किया है। कलर-पश्चिम में रंग के ऊपर बड़ा गहन अध्ययन चल रहा है। और रंग के आधार पर कई चीजें पैदा हो रही हैं। कलर थेरैपी पैदा हुई है। रंग के द्वारा मनुष्य के चित्त की चिकित्सा, शरीर की चिकित्सा है, और अदभुत परिणाम उपलब्ध होते हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि आदमी के अंतर्जगत में रंग की कोई बड़ी बहुमूल्य स्थिति है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आपके कमरे को सब तरफ से लाल रंग दिया जाये, खून के रंग में सब चीजें लाल हों, प्रकाश लाल हो, फर्श लाल हो, दीवालें लाल हों तो आप तीन घंटों में विक्षिप्त हो जायेंगे। क्योंकि लाल आपको उद्विग्न करेगा; रक्त को उत्तेजित करेगा, हृदय की धड़कन बढ़ जायेगी; ब्लड प्रेशर बढ़ जायेगा और मस्तिष्क पर बुरे परिणाम होंगे।
हरे को जब आप देखते हैं, मन शांत हो जाता है। इसलिए जंगल में जाकर आपको लगता है, 'कैसी शांति है।' उस शांति में ज्यादा हिस्सा हरे रंग का है। हरियाली मन को एक शीतलता से भर जाती है। लाल रंग उत्तेजना दे सकता है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि कम्युनिस्टों ने और क्रांतिकारियों ने लाल झंडा चुना है। वह खून का, उपद्रव का प्रतीक है।
...आकस्मिक नहीं है, आकस्मिक इस जगत में कुछ भी नहीं होता। जिनका भरोसा खून पर, हत्या पर है, स्वाभाविक है कि वह लाल रंग को प्रतीक की तरह चुनें।
इस्लाम ने हरा रंग चुना है अपने झंडे के लिए, उसका कारण है, 'इस्लाम' शब्द का अर्थ ही 'शांति' होता है। इसलिए शांति को खयाल में रखकर हरे रंग को चुना। यह दूसरी बात है कि मुसलमानों ने न हरे रंग के सबूत दिए और न शांति के । लेकिन इसमें मोहम्मद का कसूर नहीं है। इस्लाम शब्द का अर्थ होता है शांति और इसलिए हरे रंग को चुना, क्योंकि हरा रंग गहरे रूप से शांतिदायी है।
रंग आपको चालित करते हैं, उत्तेजित करते हैं । पश्चिम में एडवरटाइजमेंट की सलाह देनेवाले लोग इसकी भी सलाह देते हैं कि आप अपनी चीजें बेचें तो किस रंग के डिब्बे में बेचें; क्योंकि सभी रंगों के डिब्बे एक से नहीं दिखते; क्योंकि सभी रंग अलग-अलग तरह से पकड़ते हैं। आप चकित होंगे कि बहुत बार ऐसा हुआ है कि कोई एक ही चीज, जैसे कोई साबुन, पीले रंग के डिब्बे में बिक रही थी और उसकी बिक्री बाजार में कम थी। और फिर सलाहकारों ने सलाह दी कि रंग का उपद्रव हो रहा है; साबुन तो ठीक है लेकिन डिब्बे का रंग गलत है, इतना आकर्षक नहीं है कि लोगों को पकड़ ले। और जहां हजारों साबुन के डिब्बे रखे हों दुकान पर, वहां रंग ऐसा होना चाहिए जो आकर्षित कर ले, पकडले. सम्मोहित कर ले-कि नौ सो निन्यानबे डिब्बे पीछे छट जायें और एक डिब्बे पर हाथ पहंच जाये।
...तो डिब्बे का रंग बदल देने से साबुन की बिक्री बढ़ गई। किताबों के कवर का रंग बदल देने से बिक्री बढ़ जाती हैं, घट जाती है। एक्सपर्ट जाकर बाजारों में जांच करते रहते हैं कि स्त्रियां जो खरीदने आती हैं, सुपर-मार्केट में, वे किस रंग से आंदोलित होती हैं। किस उम्र की स्त्री किस रंग से आंदोलित होती है । तो जिस उम्र की स्त्री को बेचना हो चीज को, उसके रंग का खयाल रखना जरूरी है।
आप जैसे कपडे पहनते हैं, वे भी आपके चित्त की लेश्या की खबर देते हैं । ढीले कपडे-कामक आदमी एक तरह के कपडे पहनेगा. कामवासना से हटता हुआ आदमी दूसरे तरह के कपड़े पहनेगा। रंग बदल जायेंगे, कपड़े के ढंग बदल जायेंगे। कामुक आदमी चुस्त कपड़े पहनेगा, गैर-कामुक आदमी ढीले कपड़े पहनना शुरू कर देगा। क्योंकि चुस्त कपड़ा शरीर को वासना देता है, हिंसा देता है।
सैनिक को हम ढीले कपड़े नहीं पहना सकते । ढीले कपड़े पहनकर सैनिक लड़ने जायेगा तो हारकर वापस लौटेगा । साधु को चुस्त
276
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org