Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 526
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 और जो व्यक्ति जीवन में वासना से इतना भरा है कि विवेक को जगने का मौका नहीं दिया; और जो हर क्षण हर तरह से शरीर के साथ अंधा होकर चलने को राजी है, वह मरते वक्त बहुत पछतायेगा; बहुत पीड़ित होगा। क्योंकि जब मृत्यु छीनने लगेगी शरीर को, तब उसकी पीड़ा का अंत नहीं रहेगा। क्योंकि उसने अपने को शरीर ही जाना है। ___ मृत्यु में कोई भी दुख नहीं है, हमारे अज्ञान में दुख है। क्योंकि हम शरीर से अपने को जोड़े हुए हैं। और जब शरीर मिटने लगता है, तब हम चीखते-चिल्लाते हैं कि मैं मरा। ___ मैं कभी भी नहीं मरता हूं ! मेरे मरने का कोई उपाय नहीं है ! लेकिन जिससे मैंने अपने को एक समझ रखा है, जब वह टूटता है, मिटता है, तो लगता है; मैं मर रहा हूं। मृत्यु केवल उनके लिए दुख है, जो विवेकशून्य हैं। जो विवेकपूर्ण हैं, उनके लिए मृत्यु भी एक आनंद है। महावीर के ये सूत्र : 'संयम क्या है'—उसकी व्याख्या में हैं। एक-एक सूत्र को समझने की कोशिश करें। 'जो न तो जीव अर्थात चेतनतत्व को जानता है, और न अजीव अर्थात जड़तत्व को जानता है, वह जीव-अजीव के स्वरूप को न जाननेवाला साधक, भला किस तरह संयम को जान सकेगा? 'जो जीव को जानता है और अजीव को भी, वह जीव और अजीव दोनों को भलीभांति जाननेवाला साधक ही संयम को जान सकेगा।' मनुष्य दोहरा अस्तित्व है। एक है परिधि-जहां शरीर है, पदार्थ है, मिट्टी का जोड़ है; और एक है भीतर का बोध, चैतन्य, प्रकाश–जो पदार्थ नहीं है, जो परमात्मा है। मनुष्य इस दो का जोड़ है। और जब तक साफ न हो जाये कि शरीर कहां समाप्त होता है और कहां मैं शुरू होता हूं; और यह बात प्रतीत न हो जाये कि शरीर पृथक है और मैं पृथक हूं, तब तक, महावीर कहते हैं, संयम असंभव है। __ जो जीव को और अजीव को अलग-अलग नहीं जानता; क्या मेरे भीतर सिर्फ पदार्थ है और क्या मेरे भीतर चैतन्य है, इसकी जिसे प्रतीति नहीं; जिसने भीतर प्रकाश को जलाकर यह नहीं देख लिया कि मैं दो हूं; और जिसे साफ नहीं हो गया है कि परिधि मेरी नहीं है, परिधि संसार से मुझे मिली है, और मैं सिर्फ भीतर बसा हुआ अतिथि हूं, मेहमान हूं, और यह घर सदा रहनेवाला नहीं है, बहुत बार इस घर में मैं रहा हूं, बहुत-से घर मुझे मिले हैं और छूट गये हैं...। __ रोशनी चाहिए भीतर। उस रोशनी में ही यह भेद, यह भिन्नता स्पष्ट हो सकती है। हम अंधेरे में चल रहे हैं, जहां कुछ भी रेखाएं नहीं दिखाई पड़तीं। अंधेरे का मतलब ही होता है, जहां भेद दिखाई न पड़े। ___ इस कमरे में अंधेरा छा जाये, तो उसका क्या अर्थ है? उसका इतना ही अर्थ है कि मैं देख न पाऊंगा कि कौन कौन है, क्या क्या है। कहां कुर्सी समाप्त होती है, कहां आप शुरू होते हैं। कहां आप समाप्त होते हैं, कहां आपका पड़ोसी शुरू होता है। ___ अंधेरे का मतलब है, जहां भेद खो जायेंगे और जहां सीमाएं दिखाई न पड़ेगी। अंधेरा सारी सीमाओं को तोड़ देता है और अपने में लीन कर लेता है। प्रकाश का क्या अर्थ है? प्रकाश का अर्थ है, जहां सीमाएं फिर उभर आयेंगी। कुर्सी कुर्सी होगी, बैठनेवाला बैठनेवाला होगा। घर घर होगा, मेहमान मेहमान होगा। घर के भीतर ठहरनेवाला अलग होगा, घर की दीवालें अलग होंगी। प्रकाश चीजों को प्रगट कर देता है-उनकी सीमाएं, उनके लक्षण, उनके भेद। अंधेरा सब सीमाओं को तोड़ देता है। मैंने सुना है कि नसरुद्दीन युवा था; और एक रात बड़ा सज-धजकर तैयार था और अपनी लालटेन साफ कर रहा था। तो उसके 512 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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