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संन्यास प्रारंभ है, सिद्धि अंत
शराब में अपने-आप में कोई बुराई नहीं है। बुराई है इसमें कि जो बीमारी मिट सकती थी, उसे हम भुलाकर स्थगित कर रहे हैं, टाल रहे हैं। वह जीवन में और गहरी होती चली जायेगी। और एक ऐसी घडी आ जायेगी कि हम इतने कमजोर हो जायेंगे बेहोश होते-होते कि बीमारी हमसे सबल होगी और उसे मिटाने का कोई उपाय न रह जायेगा।
लेकिन, शराब अगर अकेली मूर्छा की बात होती तो भी ठीक था, बहुत सी अच्छी शराबें हैं। धार्मिक शराबें भी हैं, जिनमें पता ही नहीं चलता कि हम अपने को भुला रहे हैं। एक आदमी बैठा है और राम-राम, राम-राम जप रहा है। आपको पता नहीं होगा कि एक ही शब्द को बार-बार दोहराने से मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो मूर्छा ले आते हैं। एक ही शब्द की ध्वनि बार-बार चोट करती रहे तो ऊब पैदा करती है, उदासी पैदा करती है, तंद्रा पैदा करती है, नींद पैदा हो जाती है।
तो एक आदमी सुबह से बैठकर एक घण्टा अगर राम-राम या ओंकार, या नमोकार करता रहे-एक ही शब्द को दोहराता रहे-तो उस पुनरुक्ति के कारण मूर्छा पैदा हो जाती है। उस मूर्छा में और शराब की मूर्छा में कोई बुनियादी अंतर नहीं है । यह ध्वनि के माध्यम से मस्तिष्क को सुलाना है। __छोटे-छोटे बच्चे को मां यही करती है, लोरी सुना देती है : राजा बेटा सो जा, राजा बेटा सो जा, राजा बेटा सो जा। थोड़ी देर में राजा बेटा सो जाता है। मां समझती है कि उसके संगीत के कारण सो रहा है, तो गलती में है—राजा बेटा सिर्फ ऊब रहा है। बार-बार कहे जा रहे हो, राजा बेटा सो जा-इतनी ऊब पैदा हो जाती है कि इस ऊब से बचने का एक ही उपाय रहता है कि वह नींद में खो जाये। इसको आप ठीक से समझ लें। __ ऊब पैदा हो जाती है, तो ऊब से बच्चा भाग भी तो नहीं सकता । मां को छोड़कर कहां भागे-बिस्तर पर उसको पकड़े बैठी हुई है। उसको छोड़कर बच्चा कहीं जा भी नहीं सकता। जाने का कोई उपाय नहीं है। एक ही भीतरी उपाय है कि नींद में डूब जाये, तो इस उपद्रव से छुटकारा हो।
लेकिन जो लोरी का सूत्र है, वही जिनको हम मंत्र कहते हैं, उनका सूत्र है। छोटे बच्चे को मां कह रही है : राजा बेटा सो जा। जरा बच्चा बड़ा हो गया है, वह खुद ही राम-राम, राम-राम जप रहा है। उसका खुद चित्त ऊब जाता है । ऊब से झपकी लग जाती है। नींद में डब जाता है। यह झपकी थोडा फायदा भी कर सकती है, जैसा नींद करती है-स्वस्थ करेगी: थोडा ताजा करे
आज पश्चिम में महर्षि महेश योगी के ट्रान्सेन्डेन्टल मेडिटेशन का जोर से प्रचार है। लोरी से ज्यादा नहीं है वह । जो भी किया जा रहा है, वह सिर्फ इतना है कि एक शब्द दिया जा रहा है, एक मंत्र दिया जा रहा है-इसे दोहराये चले जाओ। इस दोहराने से तंद्रा पैदा होती
पूरब में इतना प्रभाव नहीं पड़ रहा है। भारत में कोई प्रभाव नहीं है, अमरीका में बहुत प्रभाव है, कारण ? अमरीका में नींद खो गयी है, भारत में अभी भी लोग सो रहे हैं।
अमरीका में नींद सबसे बड़ा सवाल हो गया है। बिना ट्रैक्विलाइजर के सोना मुश्किल है । फिर धीरे-धीरे ट्रैक्विलाइजर का भी शरीर आदी हो जाता है। फिर उनसे भी सोना मुश्किल है। और नींद इतनी ज्यादा व्याघात से भर गयी है कि ट्रान्सेन्डेन्टल मेडिटेशन, भावातीत-ध्यान जैसे प्रयोग फायदा पहुंचा सकते हैं, और नींद आ सकती है।
लेकिन नींद ध्यान नहीं है, नींद मूर्छा है। इसके अच्छे परिणाम भी हो सकते हैं। नींद स्वास्थ्यकृत है, स्वास्थ्य को देगी, थोड़ा सुख भी देगी। नींद के बाद थोड़ा हलकापन भी लगेगा। और सच्चाई तो यह है कि साधारण नींद की अपेक्षा मंत्र के द्वारा जो नींद आती है, वह ज्यादा गहरी होती है। क्योंकि मंत्र के द्वारा जो नींद आती है, वह हिप्नोसिस है, वह सम्मोहन है। हिप्नोसिस शब्द का अर्थ भी निद्रा
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