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संन्यास प्रारंभ है, सिद्धि अंत भी कर्म इकट्ठे किये हैं, वे दूसरे से संबंधित होने के लिए। हमारा सारा खेल यंत्र का है। हमारा सारा शरीर, हमारा सारा मन दूसरे से संबंधित होने का उपकरण है। जब कोई चेतना अपने से संबधित होती है, यह सारा उपकरण नीचे गिर जाता है। इसकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। इससे हमारा संबंध टूट जाता है।
यह जो संबंध का टूट जाना है, तभी सर्वत्रगामी केवलज्ञान का उदय होता है । तब ऐसे बोध का जन्म होता है, जो सब तरफ फैलता चला जाता है। जिसकी कोई सीमा नहीं है: जो असीम है। तब भीतर से प्रकाश के वर्तुल चारों तरफ फैलते चले जाते हैं, अनंत लोक को घेर लेते हैं । जितना विस्तार है, उसे घेर लेते हैं। महावीर कहते हैं, न केवल लोक का, बल्कि अलोक का भी बोध हो जाता है। ___ मैंने पीछे आपको कहा कि आधुनिक भौतिक शास्त्री एंटी-यूनिवर्स, अलोक की धारणा के करीब पहुंच गये हैं। और पहुंचना जरूरी हो गया, क्योंकि जगत का एक अनिवार्य नियम समझ में आ गया है कि यहां द्वंद्व के बिना कुछ भी नहीं होता। यहां होने का ढंग विपरीत के द्वारा है। यहां सब चीजें विपरीत के साथ मौजूद हैं; अंधेरा प्रकाश के साथ, जन्म मृत्यु के साथ । तो अकेला यूनिवर्स, अकेला लोक नहीं हो सकता, अलोक भी होगा। इससे विपरीत भी कुछ होगा। ___ महावीर बड़ी अनूठी बात कहते हैं। और तब तो उनके पास कोई वैज्ञानिक उपकरण न थे इसको जानने के। निश्चित ही, यह उनके ज्ञान के विस्तार में ही प्रतीत हुआ होगा। क्योंकि वैज्ञानिक के पास तो उपकरण हैं, महावीर के पास तो कोई उपकरण न थे; कोई प्रयोगशाला न थी; स्वयं को छोड़कर। खुद ही प्रयोगशाला थे-इससे ज्यादा तो कुछ भी साथ न था। आंख बंद करके भीतर देखने के सिवा उनकी कोई और विधि न थी। इस विधि के द्वारा उनको यह प्रतीति हई कि अलोक भी है एंटी-यनिवर्स भी है।
ठीक उस अलोक के नियम इसके बिलकुल विपरीत होंगे। वह इससे बिलकुल उलटा है। और वह उलटा होना जरूरी है ताकि यह लोक हो सके। क्योंकि द्वन्द्व के बिना जगत में कोई भी अस्तित्व नहीं है। अगर स्त्रियां न हों, तो पुरुष खो जायें; पुरुष न हों, स्त्रियां खो जायें।
एक बहुत पुरानी कथा है, अरब में कि एक बार लोग बिलकुल सुस्त और कहिल हो गये, और ऐसा समय आया कि सब आलसी हो गये। कोई कुछ करना नहीं चाहता था। कोई कुछ करता नहीं था। तो एक मनीषी को पूछा गया कि क्या करें? तो उसने कहा कि तुम एक उपाय करो, सारे पुरुषों को एक द्वीप पर बंद कर दो और सारी स्त्रियों को दूसरे द्वीप पर बंद कर दो । बस, सब ठीक हो जायेगा। ___ पर उन्होंने कहा कि आप पागल हो गये हैं, इससे क्या होगा ? स्त्रियों को एक द्वीप पर बंद कर देंगे, पुरुषों को एक द्वीप पर बंद कर देंगे-इससे सुस्ती कैसे मिटेगी? -- उसने कहा कि तुम इसकी फिकर छोड़ो-वे दोनों ही नाव बनाने में लग जायेंगे कि दूसरे द्वीप पर कैसे पहुंचे । सुस्ती बिलकुल टूट जायेगी। आलस्य बिलकुल खो जायेगा। उपक्रम आ जायेगा, श्रम शुरू हो जायेगा । पुरुष अकेला नहीं रह पायेगा, स्त्री अकेली नहीं रह पायेगी। वे पास आना चाहेंगे। उपद्रव शुरू हो जायेगा । तुम अराजकता पैदा कर दो, तुम दोनों को अलग कर दो। __द्वन्द्व यहां इस पृथ्वी पर जीवन का आधार है। तो महावीर कहते हैं, अलोक और लोक ये दो अस्तित्व की अनिवार्यताएं हैं। जिस व्यक्ति के भीतर मौन घटित होगा, मन समाप्त हो जायेगा; जहां मन समाप्त होता है, वहां मौन है। जो भीतर मुनि हो जायेगा, उसको लोक
और अलोक दोनों आलोकित हो जायेंगे, दोनों दिखायी पड़ने लगेंगे। जीवन का मौलिक आधार दिखायी पड़ जायेगा कि द्वन्द्व, ड्यूआलिटि, डायलेक्टिक्स, संघर्ष, जीवन का आधार है। ___ और इस जीवन से द्वन्द्व नहीं मिट सकता। कोई चाहे तो अपने भीतर द्वन्द्व के पार जा सकता है। लेकिन बाहर द्वन्द्व नहीं मिट सकता-नये रूप ले लेगा, नये संघर्ष बना लेगा, नये उपद्रव खडा करेगा-क्योंकि बिना उपद्रव के जीवन अस्तित्व में नहीं हो सकता।
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