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महावीर-वाणी भाग : 2
न पाकर भीतर की तरफ मुड़ना अनिवार्य हो जायेगा। और एक किरण आपको मिल जाये, सिद्ध होने की एक झलक, फिर आपको कोई रोक न सकेगा। फिर कितने ही संसार चारों तरफ खड़े आपको बुलाते रहें, निर्मूल्य हैं । सब स्वप्न हो गया ! जैसे नींद जिसकी टूट जाये, फिर स्वप्न कितना ही मधुर क्यों न रहा हो, वापस नहीं बुला सकता । ऐसे ही, जिसकी तंद्रा में एक किरण सिद्धावस्था की उतर आये, फिर संसार व्यर्थ है। फिर उसे नहीं बुला सकता।
ऐसी ही चेतना का नाम संन्यस्त चेतना है। संन्यास प्रारंभ है, सिद्ध होना अंत है।
आज इतना ही।
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