Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 595
________________ । मनुष्य जैसा है, अपने ही कारण है।। 'मनाय जैसा है, वह अपने ही निर्माण से वैसा है। - महावीर की दृष्टि में मनुष्य का। उत्तरदायित्व चरम है। दुख है तो तुम कारण हो। सुख है तो तुम कारण हो। बंधे हो तो तुमने बंधना चाहा है। मुक्त होना चाहो। मुक्त हो जाओगे। कोई मनुष्य को बांधता नहीं, कोई मनुष्य को मुक्त नहीं करता। मनुष्य की अपनी वृत्तियां ही बांधती हैं, अपने राग-द्वेष ही बांधते हैं, अपने विचार ही बांधते हैं। एक अर्थ में गहन दायित्व है मनष्य का, क्योंकि जिम्मेवारी किसी और पर फेंकी नहीं जा सकती। - महावीर के विचार में परमात्मा की कोई जगह नहीं है। इसलिए तुम किसी और पर दोष न फेंक सकोगे। महावीर ने। दोष फेंकने के सारे उपाय छीन लिए है।। सारा दोष तुम्हारा है। लेकिन इससे निराश होने का कोई कारण नहीं है। इससे निराश हो जाने की कोई वजह नहीं है। 'चूंकि सारा दोष तुम्हारा है, इसलिए तुम्हारी मालकियत की उदघोषणा हो रही। है। तुम चाहो तो इसी क्षण जंजीरें गिर। सकती हैं। तुम उन्हें पकड़े हो, जंजीरों ने तुम्हें नहीं पकड़ा है। और किसी और ने तुम्हें। कारागृह में नहीं डाला है, तुम अपनी मर्जी से प्रविष्ट हुए हो। तुमने कारागृह को घर समझा है। तुमने कांटों को फूल समझा है।। ओशो Jain Education International For Private & Personal Use Ony www.jainelibrary.org

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