Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 571
________________ संन्यास प्रारंभ है, सिद्धि अंत मन कहना ठीक नहीं— मनन, चिंतन, विचारों की धारा, नदी । ये विचार बहे चले जाते हैं। और जब तक ये बहते रहते हैं, तब तक आप शांत नहीं हो सकते । क्योंकि हर विचार आपको आंदोलित कर जाता है; हर विचार आपको हिला जाता है। कंपित होना संसार में होना है महावीर के हिसाब से। अकंप हो जाना संसार के बाहर हो जाना है। और हम प्रतिक्षण इसी कोशिश में लगे हैं कि थोड़ा सा कंपन मिले । उसे हम सेन्सेशन कहते हैं। थ्रिल...हमारी पूरी कोशिश यह है कि जिंदगी ऊब न जाये, तो कुछ नया हो जाये । एक नया वस्त्र भी आपले आते हैं, तो थोड़ी जिंदगी में रौनक मालूम पड़ती है। एक नयी चीज खरीद लाते हैं। तो लोग पागल हो गये हैं खरीदने में । बिना किसी फिक्र के चीजें खरीदते चले जाते हैं । क्योंकि हर नयी चीज थोड़ी सी थ्रिल देती है। थोड़ी देर को ऐसा लगता है, जिंदगी आयी। क्योंकि थोड़ी सी ऊब टूटती है, बोर्डम टूटती है। मन की पूरी कोशिश यह है कि आप नया-नया खोजते रहें रोज। यह जानकर आप हैरान होंगे कि पूरब के मनीषियों ने पुराने दिनों में इस बात की फिक्र की थी कि समाज बहुत न बदले, चीजें बहुत नयी न हों, घटनाओं में बहुत नयापन न हो ताकि मन को तरंगित होने का कम से कम उपाय हो । वह जो पूरब का समाज स्टैटिक था, स्थिर था, उसके पीछे मनीषियों का हाथ था। आज पश्चिम में ठीक उससे उलटी हालत हो गयी है। हर चीज नयी हो, हर दिन नयी हो। दूसरे दिन पुरानी चीज ऊब देने लगती है। सब कुछ नया होता चला जाये। मेरीका के आंकड़े मैं पढता था। कोई भी आदमी एक मकान में तीन साल से ज्यादा नहीं रहता । यह औसत है। हर आदमी तीन साल के भीतर तो मकान बदल ही लेता है। कार तो आदमी हर साल बदल लेता है। तलाक की संख्या पचास प्रतिशत को पार कर गयी है। सौ विवाह होते हैं, तो पचास तलाक हो जाते हैं । इस सदी के पूरे होते-होते जितने विवाह होंगे, उतने ही तलाक होंगे। ये विवाह और तलाक भी मौलिक रूप से नये की खोज है। मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोस में एक चर्च था। और चर्च का पादरी कभी-कभी नसरुद्दीन को शिक्षण दिया करता था । देखता था उसका जीवन, तो कभी-कभी समझाता था। एक दिन नसरुद्दीन ने उससे कहा कि आप ठीक ही कहते हैं, मैंने अब पक्का कर लिया है कि आज जाकर मैं अपनी पत्नी से क्षमा मांग लूंगा, और अब किसी स्त्री की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूगा ! बहुत हो गया। और आप ठीक ही कहते थे, लेकिन मैं माना नहीं। यह मन की दौड़ थी, वासना थी, चलती रही। लेकिन अब उम्र भी हो गयी । तो आज जाकर पत्नी से क्षमा मांग लेता हूं। सब कन्फेशन कर लूंगा कि मैं उसे धोखा दे रहा हूं। दूसरे दिन सुबह पादरी प्रतीक्षा करता रहा कि कब नसरुद्दीन घर से निकले। नसरुद्दीन बड़ी शान से, बड़ी ताजगी से जोर से कदम रखता हुआ चर्च के पास से निकला। बड़ा प्रसन्न था। तो पादरी ने कहा, 'मालूम होता है, नसरुद्दीन, पत्नी ने तुम्हें क्षमा कर दिया !' नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं, पत्नी ने क्षमा तो नहीं किया, लेकिन अभी बात न करो। दो-चार दिन बाद...! पादरी ने कहा, लेकिन, 'ऐसा क्या मामला हुआ है? प्रसन्न तुम बहुत दिखते हो?' नसरुद्दीन ने कहा, 'मैंने अपनी पत्नी को कहा कि मैं तुझे धोखा दे रहा हूं। एक दूसरी स्त्री से मेरा संबंध है । तो वह बड़ी बेचैन हो गयी और कहने लगी, उसका नाम बताओ। तो नाम बताना तो उचित नहीं था, क्योंकि उस दूसरी स्त्री की इज्जत का भी सवाल है; उसके पति का भी सवाल है; उसके बच्चों का भी सवाल है। तो मैंने कहा कि नाम तो मैं नही बता सकूँगा, माफी मांगता हूं, क्षमा कर दे । तो पत्नी नाराज हो गयी। उसने कहा कि जब तक तुम नाम नहीं बताओगे, मैं क्षमा न करूंगी। और फिर कहने लगी, अच्छा, अगर तुम नहीं बताते तो मैं खुद ही खयाल कर लेती हैं। तुम पादरी की पत्नी के प्रेम में तो नहीं हो? और जब मैं चुप रहा तो उसने कहा कि नहीं-नहीं, पादरी की बहन ! और जब मैं फिर भी चुप रहा तो उसने कहा कि नहीं-नहीं, अब तो पक्का है कि तुम पादरी की लड़की से...! 557 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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