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महावीर वाणी भाग 2
आबद्ध हो गया । और सारी दुनिया उसमें रस देखती है। जो पीते हैं, वे भी रस देखते हैं; जो नहीं पीते हैं, वे भी रस देखते हैं। तो सारी दुनिया की हवा उसको राजी कर देती है कि इसमें जरूर रस है। और अगर मुझे नहीं दिखाई पड़ता; तो अपनी ही बुद्धि की भूल है। थोड़ा अभ्यास...! वह कर लेता है अभ्यास । जब अभ्यास हो जाता है, तो रस तो बिलकुल नहीं मिलता, लेकिन अब न पीये तो दुख मिलता है।
गलत का यही आधार है । अगर आप करें तो कोई सुख नहीं पाते, न करें तो दुख पाते हैं। क्योंकि न करें तो एक आदत, एक तलफ, एक बेचैनी कि कुछ करना था वह नहीं किया... । तब फिर इस दुख से बचने के लिए आदमी पीये चला जाता है।
हमारे जीवन के अधिक पाप, हमारे चारों तरफ पाप के खिलाफ जो चर्चा है, उससे पैदा हुए हैं। और जब तक यह चर्चा बंद नहीं होती, तब तक उन पापों का हटाने का कोई उपाय नहीं है ।
अभी कल ही मैंने देखा अखबार में कि दिल्ली में साधु-संन्यासियों ने एक सम्मेलन किया अश्लील पोस्टरों के खिलाफ । साधु-संन्यासियों को क्या प्रयोजन अश्लील पोस्टरों से? इनको क्या अड़चन है ?
कोई अश्लील पोस्टर देख रहा है, यह उसकी निजी स्वतंत्रता है। और उसे कोई रस आ रहा है तो वह हकदार है उस रस को लेने का। तुम्हें रस नहीं आ रहा – तुम साधु-संन्यासी हो गये हो; तुमने सब छोड़ दिया। लेकिन अब भी तुम ... अब भी तुम परेशान क्यों हो?
जरूर ये साधु-संन्यासी भी अश्लील पोस्टर देखते होंगे। इनको पीड़ा क्या हो रही है? और ये अपना मोक्ष, सामायिक, ध्यान छोड़कर इस तरह के सम्मेलन क्यों करते हैं? इतनी अड़चन क्यों उठाते हैं?
यह बड़े मजे की बात है कि 'अश्लील पोस्टर होने चाहिए' इसका कोई सम्मेलन नहीं करता, और वे चलते हैं। और यह सम्मेलन करते रहे हजारों साल से, कोई रुकता नहीं । अश्लील पोस्टर में ये साधु-संन्यासी रस को बढ़ाते हैं, कम नहीं करते। ये जिम्मेवार हैं।
अश्लील पोस्टर हट जायेंगे उस दिन, जिस दिन हम कह देंगे, यह व्यक्ति की निजी बात है कि वह नग्न चित्र देखना चाहता है, मजे से देखे । नग्न चित्रों को न तो जमीन के नीचे दबाकर बेचने की जरूरत है, न छिपाकर रखने की जरूरत है। नग्न चित्रों को तो प्रगट कर देने की पूरी जरूरत है कि लोग देखकर ही ऊब जायें कि अब कब तक देखते रहें ।
मैंने सुना है कि एक सर्जन एक आर्ट एग्जिबिशन में गया एक चित्र खरीदने । चित्र का उसे शौक था। प्रदर्शनी में बड़े-बड़े चित्रकारों की पेंटिग्स थीं-सब उसे दिखायी गयी, पर उसे कोई जंची नहीं। तब जो उसे दिखा रहा था, गाइड, उसने कहा, 'फिर ऐसा करिये, आप अंडर ग्राउंड पेंटिग्स देखें। आपको ये कुछ जंच नहीं रही हैं, तो इस प्रदर्शनी में छिपा हुआ हिस्सा भी है जहां सिर्फ न्यूड्स, नग्न स्त्रियों के चित्र हैं – वे आपको जरूर जंचेंगे । '
तो उसने कहा, 'छोड़ो! मैं सर्जन हूं मैं इतनी नग्न स्त्रियां देख चुका हूं कि अब मैं डरता हूं, जब फिर से मुझे नग्न स्त्री देखनी पड़ती है। नग्न स्त्रियां देख-देखकर मेरा न केवल नग्न स्त्रियों को देखने में रस खत्म हो गया है— मेरा सारा रोमांस, स्त्री के प्रति मेरा आकर्षण, काम वासना का उद्दाम वेग, वह सब शिथिल पड़ गया है। '
कपड़े ढांक-ढांककर हम शरीर में आकर्षण बढ़ा रहे हैं। जिस दिन दुनिया नग्न होगी, उस दिन कोई नग्न पोस्टर लगाने की जरूरत नहीं रह जायेगी। नग्न पोस्टर तरकीब है। इधर कपड़े से ढांको, तो फिर उघाड़कर दिखाने में रस आना शुरू हो जाता है। आदमी जब तक इस पूरे भीतरी उलझाव को, उपद्रव को न समझ ले, तब तक जीवन में संयम की जगह संयम के नाम पर एक कारागृह पैदा हो जाता
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