Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna
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महावीर वाणी भाग : 2
करीब-करीब हमारी जिंदगी ऐसी ही उधार है।
परमात्मा को भी चिट्ठी लिखते हैं, तो वह परमात्मा शंकर का, नागार्जुन का, वसुबंधु का। मोक्ष को चिट्ठी लिखने की कोशिश करते हैं, वह मोक्ष महावीर का, बुद्ध का । ब्रह्म की कुछ खोज-खबर लेते हैं - तो वह ब्रह्म कृष्ण का !
किसी और का हमेशा !
प्रेयसी भी अपनी न हो, तो पत्र लिखना व्यर्थ है। परमात्मा अपना न हो, तो सारी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो जाती हैं। स्मरण जो व्यक्ति रखता है, आज नहीं कल उधार से बच जाता है, और अपने निज - परमात्मा की खोज करने लगता है। और जिस दिन खोज निज होती है, उसका आनंद ही और है। क्योंकि तभी उदघाटन होना शुरू होता है ! अंधेरे से प्रकाश की तरफ, मृत्यु से अमृत की तरफ यात्रा शुरू होती है।
पांच मिनट रुकें; कीर्तन करें।
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