Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 528
________________ महावीर वाणी भाग : 2 कभी आप एक अंधेरे रास्ते से जा रहे हैं और अचानक एक कार निकल जाये तीव्र प्रकाश के साथ, तो कार के निकल जाने के बाद रास्ता और भी अंधेरा हो जायेगा - जितना कार के निकलने के पहले भी नहीं था ! वह तीव्र रोशनी आपकी आंखों को भटका जायेगी। और उस तीव्र रोशनी की तुलना में बाद में अंधेरा बहुत भयंकर मालूम होगा । ध्यान रहे, आदिम मनुष्य को भीतर इतना है अंधेरा, नहीं मालूम होता था, जितना आधुनिक मनुष्य को मालूम होता है। बाहर काफी रोशनी है। आदिम मनुष्य के लिए बाहर भी अंधेरा ही था, या बहुत कम रोशनी थी । भीतर इतना अंधेरा नहीं मालूम होता था। जितना मनुष्य की सभ्यता बाहर के जगत में विकसित होती चली जाती है, उतना ही भीतर का अंधेरा घना मालूम होता है । वह घना हो नहीं रहा है, तुलना में घना मालूम होता है। क्योंकि हमारे सभी अनुभव सापेक्ष हैं। तो जिस व्यक्ति को भीतर के प्रकाश की खोज करनी है, उसे दो काम करने होंगे। पहला तो, उसे भीतर के अंधेरे के प्रति आंखों को राजी करना होगा, ऐडजस्ट करना होगा। चोर अंधेरे में ज्यादा देख पाता है आपकी बजाय – अंधेरे का अभ्यास करता है। और आप भी जब कमरे में आते हैं— अंधेरे कमरे में बाहर से तो बिलकुल अंधेरा मालूम पड़ता है। थोड़ी देर बैठें, कुछ न करें— कुछ करने की जरूरत नहीं, सिर्फ बैठें और आंखों को ऐडजस्ट होने दें, समायोजित होने दें - थोड़ी ही देर में अंधेरा कम मालूम होने लगेगा, थोड़ी ही देर में थोड़ा-थोड़ा दिखाई पड़ना शुरू हो जायेगा । अगर आप यह अभ्यास रोज करते चले जायें, जो कि चोर को करना पड़ता है, तो आपको इतना अंधेरा मालूम नहीं होगा कि आप किसी चीज से टकरायें। आप बिलकुल अंधेरे कमरे में भी बिना टकराये चल सकेंगे, उठ सकेंगे, काम कर सकेंगे। थोड़े-से आंख के अभ्यास की जरूरत है ताकि आंख अंधेरे में देखने लगे । ध्यान रहे, अंधेरा उतना ही मालूम होता है, जितना हमारा अभ्यास कम है। तो जिन्हें भीतर की रोशनी खोजनी हो उन्हें भीतर के अंधेरे के लिए थोड़े दिन राजी होना पड़ेगा। जल्दी नहीं करनी है, आंख बंद करके ही बैठा रहना चाहिए । जापान में झेन फकीर और झेन गुरु अपने शिष्यों को कहते हैं कि तुम कुछ मत करो - क्लोज द आइज ऐण्ड जस्ट सिट । मन्त्र भी मत पढ़ो, किसी भगवान का स्मरण भी मत करो। किसी मूर्ति, प्रतिमा के आसपास भी मन को मत घुमाओ । क्योंकि यह भी सब बाहर की ही रोशनियां हैं । तुम सिर्फ आंख बंद करो और बैठो। छह महीने, साल भर झेन गुरु के पास जो साधक होता है, उसको एक ही साधना करनी होती है कि वह दिन में घण्टों बैठा रहे - कुछ न करे । पहले करने का बहुत मन होता है, क्योंकि बिना किये आपको लगता है, जिंदगी बेकार जा रही है। हालांकि जिंदगी बेकार जा रही है करने में। न करने से किसी की जिंदगी बेकार क्या जायेगी ! जिंदगी बेकार जा ही रही है – कुछ भी करो! लेकिन आक्युपाइड, व्यस्त रहने से ऐसा लगता है, कुछ हो रहा है; वहम बना रहता है कि कुछ हो रहा है, कुछ कर रहे हैं। खाली बैठने में बेचैनी लगती है। मन कई बार कहेगा, कुछ करो; क्या बैठे हो ! और खाली बैठना साधक की पहली क्षमता है - कि वह बिना कुछ किये बैठा है। मन समझायेगा कि खाली अगर बैठे रहे तो शैतान का कारखाना हो जाओगे । खाली बैठे लोगों ने आज तक कोई शैतानी नहीं की, ध्यान रखना। जो काफी कर्मठ हैं, जिनको हम कर्मयोगी कहते हैं - सब उपद्रव उनके कारण हैं। वे खाली नहीं बैठ सकते, उन्हें कुछ न कुछ करना है। कुछ भी हो, उन्हें कुछ करके दिखाना है । कोई कारण नहीं है, क्योंकि करके देखनेवाला कोई नहीं है; न कोई प्रयोजन है। न इस जमीन पर कहीं रेखा छूट जाती है करने वालों की । लेकिन बड़ा उपद्रव है। जब तक होते हैं, बड़ा उपद्रव मचा लेते हैं। राजनीतिज्ञ हैं, समाज सुधारक हैं, क्रांतिकारी हैं- - बस, , करने Jain Education International 514 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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