Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 534
________________ महावीर वाणी भाग : 2 मैं अलग हूं । एक किरण इस बोध की कि मैं शरीर से भिन्न हूं, मैं चैतन्य हूं और शरीर पदार्थ है - महावीर कहते हैं - फिर संयम बिलकुल आस । फिर संयम को तोड़ना मुश्किल है। अभी संयम को साधना मुश्किल है, फिर संयम को तोड़ना मुश्किल है। अभी गलत से बचना मुश्किल है, फिर गलत को करना इससे भी ज्यादा मुश्किल हो जायेगा । 'जो जीव को जानता है और अजीव को भी, वह जीव और अजीव दोनों को भली भांति जाननेवाला साधक ही संयम को जान सकेगा।' संयम के दो अर्थ हैं। एक संयम का बाहरी अर्थ कि जो गलत है, वह न हो। और एक संयम का भीतरी अर्थ कि जो मेरी सत्ता उसमें मेरा होना हो जाये । संयम का अर्थ है : बैलेन्स की, संतुलन की आखिरी अवस्था, जहां दोनों तराजू के पलड़े बिलकुल एक रेखा में आ जाते हैं और तराजू का कांटा जरा भी कंपन नहीं दिखाता। संयम का अर्थ है : बैलेन्स की आखिरी अवस्था, जहां कोई कंपन नहीं रह जाता । असंयम में कंपन है। इसलिए असंयमी चित्त हमेशा कंपित होता रहता है— कभी इस तरफ, कभी उस तरफ; कभी यह चाहता है, कभी वह चाहता है। और असंयमी चित्त चाहता ही रहता है और कभी शांत नहीं हो पाता। चाह का कोई अंत नहीं, चाह कंपाती जाती । कंपाना एक दुख में डुबा देता है। क्योंकि कंपन एक पीड़ा है, एक तरह का बुखार है । स्वस्थ चेतना कंपेगी नहीं, अकंपित होगी। मांग चलती ही चली जाती है मन की और मन कंपता चला जाता है । वासना के झोंके हिलाते ही रहते हैं—जड़ों तक को हिला देते हैं। और अपेक्षाएं बढ़ती ही चली जाती हैं। और कुछ भी मिल जाये, शांति नहीं मिलती —- क्योंकि मिलते ही वासना आगे बढ़ जाती है। एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन उदास बैठा है। कुछ मित्र मिलने आये हैं। वे पूछते हैं कि नसरुद्दीन, बड़े उदास हो, क्या कारण आ गया? नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं, कारण तो ऐसा कुछ खास नहीं, लेकिन दो सप्ताह पहले मेरे चाचा मर गये ! बड़े गजब के अच्छे आदमी थे; भले आदमी थे और असमय मर गये। अभी कोई मरने का वक्त था ! अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दे ! लेकिन मरने के पहले पांच हजार रुपया मेरे नाम वसीयत कर गये। फिर एक सप्ताह पहले मेरे मामा मर गये ! बड़े अच्छे आदमी थे। और अभी तो जिंदगी बहुत थी, लेकिन असमय में परमात्मा ने उनको उठा लिया। भले आदमियों को परमात्मा जल्दी उठा लेता है । और मरने के पहले पंद्रह हजार रुपया मेरे नाम कर गये । .... .. ऐण्ड दिस वीक नथिंग ! और यह सप्ताह पूरा गुजर रहा है, अभी तक कुछ भी नहीं हुआ— इसलिए उदास हूं ! चाह दूसरे की मौत से भी शोषण करती है । वासना बस अपने लिए जीती है। सारी दुनिया भी मर जाये, मिट जाये, तो भी वा अपने लिए जीती है । वासना एक तरह की विक्षिप्तता है। और उसका कोई अंत नहीं है। कितना ही मिल जाये, हमेशा उदास होगी। क्योंकि जितना मिल सकता है, उससे ज्यादा की कामना की जा सकती है। आपकी कामना की कोई सीमा नहीं है। संसार की सीमा है, आपकी कामना की कोई सीमा नहीं है। आप सदा और ज्यादा के लिए सोच सकते हैं, इसलिए दुखी होंगे। संयम का अर्थ है ऐसा चित्त, जो मांगता ही नहीं; जिसकी कोई मांग नहीं है; जो अपने भीतर है; जो डोलता ही नहीं; जो डोलकर कहीं भी नहीं जाता कि यह मिल जाये, वह मिल जाये - यह मिले, वह मिले, जिसकी कोई मांग नहीं है; जिसकी कोई वासना नहीं है। लेकिन यह किस व्यक्ति की होगी? Jain Education International 520 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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