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अस्पर्शित, अकंप है भिक्षु
उसको बड़ा दुखी कर दिया । उसने गाली दी और आप प्रभावित न हुए, इसका मतलब आप उसके नियंत्रण के बाहर हो गये। आप पर अब उसका कोई वश नहीं है, कोई ताकत नहीं है । आप ताकतवर हो गये; वह कमजोर पड़ गया-वह और वजनी गाली खोजेगा।
जब कोई व्यक्ति सचमच ही साध होना शरू होता है, तो सारा समाज उसे सब तरफ से कसता है और सब तरफ से कोशिश करता है कि छोड़ो यह साधुता, आ जाओ उसी जगह जहां हम सब खड़े हैं। उस वक्त परेशानियां बढ़ जाती हैं। महावीर ने कहा है, साधु के परिश्रय, उसके कष्ट गहन हो जाते हैं। क्योंकि जिन-जिन के नियंत्रण के वह बाहर होने लगता है, वे-वे पूरी चेष्टा करते हैं नियंत्रण करने
की।
यहूदियों में एक पुरानी कहावत है कि जब भी कोई तीर्थंकर या पैगंबर पैदा होता है, कोई प्राफेट, तो पहले लोग उसको गालियां देते है; निंदा करते हैं। अगर वह निंदा और गालियों के पार हो जाये, जो कि बड़ा मुश्किल हो जाता है... । अगर वह भी निंदा और गालियों में पड़ जाए, तो लोग उसे भूल जाते हैं, क्योंकि वह उन्हीं जैसा हो गया। लेकिन अगर वह उनके पार चला जाये, तो फिर लोग उपेक्षा करते हैं। ___ ध्यान रहे, गाली से भी ज्यादा पीड़ा उपेक्षा में है। यह आपको पता नहीं है। उपेक्षा, इनडिफरेन्स... लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे वह है ही नहीं। उसके पास से लोग ऐसे गुजर जाते हैं, जैसे उसे देखा ही नहीं। __ आप खयाल करें। अगर लोग आपकी उपेक्षा करें तो आप पसंद करेंगे कि लोग गाली दें, वही बेहतर है-कम से कम ध्यान तो देते हैं। इसीलिए लोग अपराध करने को उत्सुक हो जाते हैं । जो नेता नहीं बन सकते हैं, वे गुण्डे बन जाते हैं। गुण्डों और नेताओं में जरा भी फर्क नहीं है। गुण का कोई फर्क नहीं है, दिशाएं थोड़ी भिन्न हैं । अगर गुण्डों को ठीक मौका मिले तो वे नेता बन जाएं, और नेताओं को ठीक मौका न मिले तो वे गुण्डे बन जायें।
गुण्डे और नेता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। नेता भी, दूसरे लोग ध्यान दें, इस बीमारी से पीड़ित है । जितने ज्यादा लोग ध्यान दें, उतना ही उसका अहंकार तृप्त होता है। और गुण्डा भी उसी बीमारी से पीड़ित है। लेकिन वह कोई रास्ता नहीं खोज पाता; और अगर कुछ न करे तो लोग उपेक्षा किये चले जाते हैं। तब फिर वह बुरा करना शुरू कर देता है। बुरे पर तो ध्यान देना ही पड़ेगा; उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।
एक दफा भले की उपेक्षा संभव हो, बुरे की उपेक्षा संभव नहीं है । उस पर ध्यान देना ही पड़ेगा। अदालत, कोर्ट, मजिस्ट्रेट, पुलिस, अखबार-सब उसकी तरफ ध्यान देने को खड़े हो जायेंगे। वह तृप्त होता है। अपराधियों से पूछा गया है तो वे तृप्त होते हैं, जब उनका नाम छपता है अखबारों में । लोग उनकी चर्चा करते हैं, तब वे तृप्त होते हैं। तब उन्हें लगता है कि मैं भी कुछ हूं।
उपेक्षा सबसे ज्यादा कठिन बात है।
यहूदी कहते हैं कि पहले निंदा होती है पैगंबर की। और जब निंदा से वह नहीं पीड़ित होता और पार निकल जाता है, तो उपेक्षा करना लोग शुरू कर देते हैं कि ठीक है, कुछ खास नहीं। कोई चिंता की जरूरत नहीं है। और जब वह उपेक्षा को भी पार कर जाता है, जो कि बड़ी कठिन साधना है, परिश्रय है, तब लोग श्रद्धा करना शुरू करते हैं। तो उन्होंने जिनकी निंदा की है और जिनकी उपेक्षा की है. लंबे अर्से में, वे उनकी श्रद्धा कर पाते हैं। __महावीर कहते हैं, जो इन सारी बाहर से घटने वाली घटनाओं को ऐसे सह लेता है, जैसे मेरा उनसे कोई संबंध नहीं है-शांतिपूर्वक, वही भिक्षु है।
'जो भयानक अट्टहास और प्रचंड गर्जनावाले स्थानों में भी निर्भय रहता है...।'
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