Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 487
________________ कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु तो कुछ असंभव नहीं। इतना ही मतलब है। जहां भी यह व्यक्ति जायेगा, वहां कुछ खिलेगा बजाये मुरझाने के । इसके होने का ढंग ऐसा हो गया है कि चीजें नाचेंगी, हंसेंगी, प्रसन्न होंगी, प्रफुल्लित होंगी। ___ महावीर इसी को अहिंसा कहते हैं। आप हो सकता है मांसाहार न करें, पानी छान कर पीयें, रात भोजन न करें, आप सब तरह से हिंसा को भोजन से बचा लें; लेकिन तब हिंसा आपके दूसरे पहलुओं में प्रवेश कर जाये । आप कठोर वचन बोलने लगें; कटु वचन बोलने लगें; साधुओं के वचन देखें, अति कठोर मालूम होंगे। उनकी कठोरता भी हमें लगती है कि शायद उनकी अनासक्ति का प्रतीक है; शायद उनकी कटुता उनके सत्य होने का प्रतीक है। यह बात गलत है। इन्हीं कारणों से हमने एक कहावत बना रखी है कि सत्य कटु होता है। यह बात गलत है। क्योंकि जो सत्य कटु हो जाता है, वह कटु होने के कारण ही असत्य हो जाता है। सत्य से मधुर और कुछ भी नहीं हो सकता। लेकिन बोलने का हकदार वही है, जिसके भीतर माधुर्य का जन्म हो गया है; नहीं तो वह जो सत्य बोलेगा, वह जहर होगा। आप जहर से भरे हैं-आपके भीतर से सत्य निकलेगा, वह जहर बुझा हो जायेगा। आपसे सत्य भी निकल जाये, तो आपसे बच नहीं सकता। वह जहर से बुझा तीर हो जायेगा; और जहां जायेगा,वहीं अहित करेगा। नीत्शे ने तो कहीं व्यंग में कहा है कि असत्य भी मधुर हो, तो हितकर है उस सत्य की बजाय जो कटु है । यह बात समझ में आने जैसी है। मेरी अपनी धारणा यह है कि असत्य भी अगर पूर्ण माधुर्य से निकले, तो सत्य हो जाता है। और सत्य भी अगर कटुता से निकले, तो असत्य हो जाता है। आंतरिक माधुर्य ही कसौटी है सत्य और असत्य की । और कोई कसौटी नहीं है। आंतरिक माधुर्य उसे ही प्राप्त होता है, जो विध्वंस की सारी क्षमता से शून्य हो गया है। उसकी आत्मा से मधु बहने लगता है। उससे फिर जो भी निकले, वह सत्य है। उससे फिर जो भी निकले, वह प्रेम है । महावीर कहते हैं___ "जो कटु वचन—जिससे सुननेवाला क्षुब्ध हो—नहीं बोलता, 'सब जीव अपने-अपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार ही सुख-दुख भोगते हैं'—ऐसा जानकर जो दूसरों की निंद्य चेष्टाओं पर लक्ष्य न देकर अपने सुधार की चिंता करता है...।' __इस सूत्र को ठीक से समझ लेना चाहिए। क्योंकि महावीर की आधारभूत शिक्षाओं में यह एक है कि प्रत्येक व्यक्ति जो भी अनुभव कर रहा है, जो भी कर रहा है, वह उसकी अपनी आंतरिक कर्मों की श्रृंखला का हिस्सा है। आप अगर गाली देते हैं, तो यह गाली आपके अतीत से संबंधित है; जिसको आप गाली देते हैं, उससे संबंधित नहीं है। वह सिर्फ निमित्त है। अगर आप प्रेम करते हैं, तो यह भी आपके अतीत-अनुभवों की सार शृंखला है। उससे इसका कोई संबंध नहीं है, जिसको आप प्रेम करते हैं। वह सिर्फ निमित्त है। प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर से जी रहा है, और बाहर केवल निमित्त हैं। ___ जीवन की धारा भीतर से आती है; बाहर तो केवल अवसर है। लेकिन हम उलटा सोचते हैं। हम सोचते हैं : भीतर से क्या आता है, सब कुछ बाहर है; सब कुछ बाहर से हो रहा है । एक आदमी आपको गाली देता है, थोड़ा सोचें। आपका मिजाज खराब हो तो गाली बहुत गाली मालूम पड़ेगी। मिजाज अच्छा हो तो गाली बहुत छोटी गाली मालूम पड़ेगी। अगर आप सच में ही आनंदित हों, ध्यान में मग्न हों, तो गाली गाली मालूम ही नहीं पड़ेगी। और अगर आप नर्क में बैठे हों, दुख और पीड़ा से भरे हों, तो गाली आपके लिए पूरे जीवन को बदलने का आधार हो जायेगी। हिंसा, हत्या में आप उतर जायेंगे। गाली में क्या है। गाली सिर्फ निमित्त है । जो है, वह आपके भीतर है। जैसे हम कुएं में बाल्टी डालते हैं, कुआं सूखा हो तो बाल्टी खाली लौट आती है। वैसे ही गाली एक बाल्टी की तरह आप में जाती है। आप खाली हों तो खाली लौट आती है। आप माधुर्य से भरे हों तो गाली की बाल्टी भी माधुर्य ही लेकर लौटती है और आप नर्क की अग्नि से भरे हों, तो लपटें उबलती हुई उस बाल्टी में बाहर आ जाती हैं। बाल्टी जो लेकर लौटती है, वह बाल्टी का नहीं है; जो लेकर लौटती है, वह आपका है। 473 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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