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महावीर वाणी भाग 2
और कोई पतंगे होंगे ज्योति के तो चले आयेंगे ज्योति की तरफ और कोई ज्योति फिरे पतंगों के पीछे उनको पकड़ने को, तो पतंगे कोई आते भी होंगे, फिर दुबारा नहीं आयेंगे। क्योंकि ऐसी ज्योति भरोसे की नहीं है, जो पतंगों का पीछा कर रही है कि आओ। ज्योति का मतलब ही यह है कि वह है तो पतंगे आ जायेंगे ।
ज्योति की तरह अनाक्रमक, अनाग्रह से जीता हुआ, अपने को बदलता हुआ, अपने को रूपांतरित करता हुआ व्यक्ति साधु है । 'जो अपने आपको उग्र तप और त्याग आदि के गर्व से उद्धत नहीं बनाता, वही भिक्षु है ।'
यह शर्त ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि गर्व सब तरह से उद्धत होना चाहता है; कई उपाय खोजता है। मैं त्यागी हूं; मैं भोगी नहीं हूं; मैं ध्यानी हूं; मैं समाधिस्थ हो गया – ये सारे जाल हैं जो अहंकार भीतर की तरफ फैलाता है। बाहर की संपदा छोड़ दी, तो अब भीतर की संपदा पैदा हो रही है। बाहर के खजाने छोड़ दिये, तो अब भीतर के खजाने पैदा हो रहे हैं।
साधकों के पास जायें, तो वे सब फिक्र रखते हैं कि कौन किस चक्र तक जाग गया। किसकी कुंडलिनी कितनी जागृत - सहस्रार तक पहुंची या नहीं पहुंची। वे सब हिसाब रखते हैं। एक दूसरे से सर्टिफिकेट मांग रहे हैं कि मैं कहां तक पहुंच गया। सिद्ध हो गया नहीं हो गया ? क्या प्रयोजन है ?
अस्मिता को निर्मित करना ही असाधुता है। वह किस कारण निर्मित होती है, यह सवाल नहीं है। उसे निर्मित होने देना कि मैं कुछ हूं, दूसरों से खास, दूसरों से ऊपर... ।
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बस, मेरा खास होना ही रोग है । और यह रोग सूक्ष्म है। यह दिखाई नहीं पड़ता, और बढ़ता चला जाता है । और जैसे-जैसे दूसरे लोग आदर देने लगते हैं, वैसे-वैसे पक्का होने लगता है कि बात ठीक ही है, तभी तो लोग आदर दे रहे हैं। लोग चरणों पर सिर रख रहे हैं - कुछ हो गया है तभी तो जरूरी नहीं है। कई लोगों की जरूरत है कि वे चरणों पर सिर रखे। उन्हें बिना रखे चैन नहीं है। कुछ लोग हैं जिन्हें झुकने में रस है। उन्हें बिना झुके आनंद नहीं आता। आप इसकी फिकर मत करें कि वे आपके लिए झुक रहे हैं। आप यही जानें कि उनको झुकने में कुछ रस होगा; कोई व्यायाम होगा। वे अपने लिए झुक रहे हैं। यह उनकी अपनी निजी बात है, मुझसे कुछ लेना-देना नहीं है ।
लेकिन वहम पैदा होता है। वहम पैदा हो जाता है, क्योंकि चारों तरफ हजार तरह की बीमारियों से भरे हुए लोग हैं। वे साधु को उद्धत कर देते हैं । और एक दफा अहंकार निर्मित होने लगे, तो फिर उसकी कोई सीमा नहीं है। फिर बढ़ता चला जाता है। जैसे-जैसे भरोसा बढ़ने लगता है कि लोग झुक रहे हैं, लोग आदर दे रहे हैं, जरूर मैं कुछ हूं, वैसे-वैसे कठिनाई शुरू हो जाती है।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक यात्री के साथ ट्रेन में बैठा हुआ था। कुछ बात चलाने के सिलसिले में उसने पूछा कि जरा आपका हाथ देखूं । आदमी उत्सुक हो गया ।
हाथ दिखाने को सभी उत्सुक हैं। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जो भविष्य में उत्सुक न हो। भविष्य में वही उत्सुक नहीं होगा, जिसकी कोई वासना नहीं है। जिसकी वासना है, वह भविष्य में उत्सुक होगा ही। इसलिए हाथ देखने से सुविधापूर्ण मित्रता का उपाय और नहीं है।
मुल्ला ने हाथ गौर से देखा और उस आदमी का चेहरा देखा, और कहा कि मालूम होता है, यू आर ए बैचलर - आप ब्रह्मचारी हैं। वह आदमी चकित हुआ । उसने कहा, 'अमेजिंग ! यह सच है कि मैं अभी तक ब्रह्मचारी हूं। तुमने कैसे पता लगाया ?' नसरुद्दीन की हिम्मत बढ़ी । उसने कहा कि पता ? मनुष्य-स्वभाव का मुझे अनुभव है। और यहीं तक नहीं, आई कैन सी इवन फरदर, यो फादर वाज आल्सो बैचलर - यह कुछ नहीं है, आगे तक देख सकता हूं कि तुम्हारा बाप भी ब्रह्मचारी था।
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