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पहले ज्ञान, बाद में दया
विश्वविद्यालयों की हवा से जीसस को मिला। और इसके पीछे दान का सवाल नहीं है, इसके पीछे होश का सवाल है। जितना होशपूर्ण व्यक्ति हो, उतना छीनने से मुक्त हो जाता है और देने में सरल हो जाता है। ___ महावीर को ध्यान रखें। चलें, खड़े हों, बैठे, सोयें, भोजन करें, बोलें-यह सब गौण है। सबके भीतर एक शर्त है, विवेक से। अगर विवेक सध जाये, तो सब सध जायेगा। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन को उसके चिकित्सक ने कहा कि तू शराब पीना बंद कर दे। अब नशा बहुत ज्यादा बढ़ने लगा है।
...गया था चिकित्सक के पास। तो हाथ जब चिकित्सक ने उसका अपने हाथ में नाडी देखने को लिया, तो उसका हाथ इतना कंप रहा था कि उसके चिकित्सक ने कहा कि मालूम होता है, जरूरत से ज्यादा पीने लगे हो ! बहुत पी रहे हो ! हाथ इतना कंप रहा है ! ___ नसरुद्दीन ने कहा : कहां पी पाता हूं ! ज्यादा तो जमीन पर ही गिर जाती है। तो चिकित्सक ने कहा, अब बहुत हो गया, अब रुको । तुम्हारे गिरने का वक्त करीब आया जा रहा है। तुम यह शराब बंद करो, इसी से नशा हो रहा है।
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं थोड़ा वैज्ञानिक बुद्धि का आदमी हूं। पक्का नहीं कि नशा किस बात से हो रहा है, क्योंकि मैं शराब में सोडा मिलाकर पीता हूं। पता नहीं, सोडा से हो रहा हो।
चिकित्सक ने कहा : क्या तुम पागल हो गये हो, नसरुद्दीन ? नसरुद्दीन ने कहा : मुझे कुछ दिन का वक्त दो। मेरे पास जरा वैज्ञानिक बुद्धि है, मैं प्रयोग करके देख लूं।
तो उसने एक दिन ब्रांडी में सोडा मिलाकर पिया। फिर दूसरे दिन उसने व्हिस्की में सोडा मिलाकर पिया। फिर तीसरे दिन तीसरी तरह की शराब में सोडा मिलाकर पिया। ऐसे सात दिन उसने देखा कि हर हालत में नशा होता है और एक ही कामन एलिमेंट है, सोडा।
तो उसने चिकित्सक को जाकर कहा कि तुम गलती में हो, और जिसने भी तुमको कहा कि शराब में नशा होता है, वह नासमझ है। मैंने हर हालत में, हर चीज में सोडा मिलाकर पीकर देख लिया है। लेकिन सोडा ही नशे का कारण है। तो अब मैं सोडा छोड़ता हूँ, खाली शराब पियूँगा।
महावीर ने अनुभव से जाना है कि मूर्छा हर कृत्य के पीछे पाप है। हर कृत्य के पीछे मूर्छा पाप है। आप क्या करते हैं, यह बात बहुत मूल्यवान नहीं है। उसके पीछे मूर्छा है, बेहोशी है। वही बेहोशी उपद्रव है। बेहोशी का कारण कोई भी हो सकता है। ___ मैं एक बहुत बड़े सिने-दिग्दर्शक सी.बी. डिमायल का जीवन पढ़ता था। उसने बड़े अनूठे चित्र निर्मित किये हैं। अरबों रुपये के खर्च से एक-एक दृश्य बनाया। मरते वक्त डिमायल का खयाल था कि एक दृश्य और मैं ले लूं-जगत की सृष्टि का दृश्य, जब परमात्मा छह दिन में जगत बनाता है-कैसे बनता है जगत। अरबों-अरबों डालर खर्च था। लेकिन उसने हिम्मत की और स्पेन में एक घाटी खरीदी। और उस एकांत निर्जन घाटी में अरबों रुपयों का वैज्ञानिक इंतजाम किया; दस मिनट की व्यवस्था की कि कैसे प्रकाश पैदा होता है। फिर कैसे पथ्वी का जन्म होता है। फिर कैसे पौधे पैदा होते हैं। फिर कैसे जीवन का अवतरण होता है-और छह दिन में परमात्मा कैसे प्रकृति को पूरा निर्मित करता है।
जगत का, विश्व का जन्म ! यह इतना खर्चीला मामला था, और दस मिनट में अरबों डालर का खर्च था। और एक ही बार यह हो सकता था। अगर इसका दोबारा फिर से चित्र लेना पड़े, अगर एक दफे में फिल्म गलत हो जाये, कैमरामैन भूल-चूक कर जाये, तो फिर दस गुना खर्च होगा। और बड़ा उपद्रव था।
इसलिए डिमायल ने चारों तरफ पहाड़ियों पर चार कैमरामैन के समूह खड़े किये; और सबको हर हालत में चेतावनी दी कि सब चित्र
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