Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 508
________________ महावीर वाणी भाग : 2 लेना ताकि कोई भूल-चूक न हो जाये। एक ही बार में यह घटना हो जानी चाहिए। फिर जन्म हुआ उस वैज्ञानिक व्यवस्था से प्रकाश का, खुद डिमायल रोने लगा, इतना अदभुत दृश्य था; कंपने लगा; आनंद विभोर हो गया। और जब दृश्य पूरा हुआ दस मिनट के बाद, तो उसने पहला काम किया कि पहले कैमरामैन को फोन किया और पूछा कि क्या हालत है ? उस कैमरामैन ने कहा कि क्षमा करें, मैं इतना शर्मिंदा हो रहा हूं कि क्या कहूं। मैं तो भूल ही गया । दृश्य इतना अदभुत था कि मैं देखने में लग गया, चित्र तो ले नहीं पाया। डिमायल की जैसी आदत थी, उसने दो-चार भद्दी गालियां दीं, और उसने कहा कि मुझे पता ही था कि यह उपद्रव होनेवाला है, इसलिए मैंने चार इंतजाम किये। दूसरे को फोन किया। उसने कहा कि सब ठीक था, लेकिन फिल्म चढ़ाना भूल गये। यह तो जब दृश्य खत्म हो गया, कैमरे में झांका तो पता लगा कि हम नाहक ही शटर दबाते रहे, फिल्म तो थी ही नहीं । अब तो डिमायल का हृदय धड़कने लगा कि यह तो बहुत मुश्किल मामला दिखता है। तीसरे को डरते हुए फोन किया। तीसरे ने कहा कि क्या आपको कहूं, मर जाने का मन होता है। सब ठीक था; फिल्म ठीक चढ़ी थी; कैमरा बिलकुल तैयार था —लेन्स से टोपी उतारना भूल गया। दृश्य ही ऐसा था डिमायल, कि हम क्या करें। चौथे को तो उसे भय होने लगा फोन करने में। लेकिन जब चौथे को फोन किया तो आशा बंधी । उसने कहा, 'हल्लो सी.बी.' - चौथे आदमी ने कहा, उसकी आवाज से ऐसा लगा कि कम से कम इसने ठीक अवस्था में चित्र ले लिया होगा । तो डिमायल ने पूछा कि कोई गड़बड़ तो नहीं ? उसने कहा कि बिलकुल नहीं, सब ठीक है। उसने कहा, 'ऐसा ठीक कभी नहीं था, जैसा ठीक अब " ' 'फिल्म चढ़ी है ?' 'बिलकुल फिल्म चढ़ी है। ' 'तुमने टोपी अलग कर ली लेन्स की ?' 'बिलकुल अलग है। ' डिमायल ने कहा, 'धन्यवाद परमात्मा का !' उस चौथे आदमी ने कहा, 'रिलेक्स सी.बी., जस्ट गिव ए हिंट व्हेन यू आर रेडी, वी आर रेडी - बस, जरा इशारा करो, हम बिलकुल तैयार हैं । ' पता चला वह चौथे आदमी में जो जान मालूम पड़ रही थी, वह नशा किये था । वह शराब पी गया था। अभी उनको यह पता ही नहीं था कि वह दृश्य हो चुका ! महावीर जीवन की सारी भूल, सारे पाप के पीछे, मूर्च्छा को, बेहोशी को ... ! बेहोशी का कारण कुछ भी हो। चाहे उत्तेजना आ जाये, तो भी आदमी बेहोश हो जाता है। क्रोध आ जाये, तो भी आदमी बेहोश हो जाता है। कामवासना आ जाये, तो भी आदमी बेहोश हो जाता है। लोभ पकड़ ले, तो भी आदमी बेहोश हो जाता पकड़ ले, तो भी आदमी बेहोश हो जाता है। । अहंकार एक तत्व खयाल में रखने जैसा है कि जब भी कोई बुराई पकड़ती है, तो उसमें एक अनिवार्य भीतरी शर्त है कि आप बेहोश हो चाहिए। आपने क्रोध में देखा होगा कि आप ऐसा काम कर लेते हैं, जो आप कभी कर नहीं सकते थे। बाद में पछताते हैं, रोते हैं, सोचते Jain Education International 494 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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