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कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु
जरा-सी हिम्मत बढ़ी कि आदमी ने उपद्रव शुरू किया। और चारों तरफ लोग हैं, जो आपकी हिम्मत बढ़ाने को तैयार हैं । आप उनसे सावधान रहना । महावीर यही कह रहे हैं । वे यह कह रहे हैं : साधु, सावधान रहना दूसरे लोगों से, क्योंकि वे अपनी बीमारियों से पीड़ित
हैं।
कोई झुकना चाहता है । ढेर लोग हैं, जो इनफिरियारिटी काम्लेक्स से पीड़ित हैं—जिनको हीनता की ग्रंथि है । जो सीधे खड़े हो ही नहीं सकते । जिनको सीधा खड़ा होने में डर लगता है। तो उन्होंने एक डिफेंस मेजर, एक सुरक्षा का उपाय बना लिया है-झुको । झुकने से दूसरा आदमी आक्रमण नहीं करता । क्योंकि जैसे ही कोई आदमी झुक गया, दूसरे को आक्रमण करने का मजा ही चला गया।
तो कछ लोग झके हए ही जी रहे हैं। उनका झका हआ होना उनकी बीमारी है। साध-संन्यासियों को वे मिल जाते हैं। जगह-जगह वे मौजूद हैं। एकदम झुक जाते हैं। फिर कुछ लोगों में अपराध का भाव है, गिल्ट काम्प्लेक्स है, जो अपने को अपराधी मानते हैं। अकारण भी नहीं, जीवन में बहुत अपराध हैं। आदमी अपराधों से भरा हुआ है। ___ तो अपराधी आदमी हमेशा अपने को झुकाना चाहता है। झुकना एक तरह का कन्फेशन है, एक तरह की स्वीकृति है कि मैं अपराधी हूं; पापी हूं। लेकिन दूसरा आदमी इससे गौरवांवित समझता है । वह समझता है कि जो आदमी झुक रहा है, वह यह कह रहा है कि तुम ऊपर हो, इसलिए मैं झुक रहा हूं। ___ यह आदमी झाड़ के नीचे झुकता है। यह आदमी पत्थर के सामने झुकता है । यह आदमी नदी के सामने झुकता है। इसका भरोसा मत करना । इसे कुछ प्रयोजन आपसे नहीं है। यह झुकने के बहाने, निमित्त खोजता है। यह किसी को आदर देना चाहता है, क्योंकि यह अपने को आदर नहीं दे पाता । और आदर की एक भूख रह जाती है। किसी को सम्मान देना चाहता है, क्योंकि अपने प्रति सम्मानित नहीं
साधु अपना त्याग, अपनी साधना, तप, इनके कारण उद्धत न हो जाये; अहंकार पोषित न करे: विनम्र बना रहे। विनम्र का मतलब, न-कुछ बना रहे। कुछ भी उसके चारों तरफ होता रहे, वह कभी भी अपने को किसी से श्रेष्ठता की स्थिति में न रखे।
'जो जाति का, रूप का, लाभ का, श्रृत (पांडित्य) का अभिमान नहीं करता: जो सभी प्रकार के अभिमानों का परित्याग कर केवल धर्म में, ध्यान में रत रहता है, वही भिक्ष है।' ___ 'जो महामुनि सद्धर्म का उपदेश करता है; जो स्वयं धर्म में स्थित होकर दूसरों को भी धर्म में स्थित करता है; जो घर-गृहस्थी के प्रपंच से निकलकर सदा के लिए कुशील लिंग (निन्द्यवेश) को छोड़ देता है; जो किसी के साथ हंसी-ठट्ठा नहीं करता, वही भिक्षु है।' __यहां कुछ बड़ी कीमती और सूक्ष्म बातें हैं। जो व्यक्ति अहंकार से भरा है, वह ध्यान न कर पायेगा । उसकी चिंतना सदा अहंकार के
आस-पास ही घूमती रहेगी। वह सोचेगा और सिंहासनों के लिए, और पदों के लिए, और प्रतिष्ठा के लिए। उसका चित्त अहंकार की ही बढती...अहंकार की ही सीढियां गिनने में लगा रहेगा। ध्यान में तो वही व्यक्ति प्रविष्ट हो सकता है, जिसने अहंकार की सीढियां तोड दी हैं; जिसको अब अहंकार की यात्रा नहीं है; जिसका अहंकार का पथ बंद हो गया, और जिसने कहा, इस ओर जाना नहीं है।
अहंकार में जाने का अर्थ है बाहर जाना । क्योंकि अहंकार की तृप्ति दूसरे कर सकते हैं। ध्यान रहे, अगर आप जंगल में अकेले हैं, तो अहंकार की तृप्ति नहीं हो सकती । अहंकार की तृप्ति के लिए दूसरा चाहिए । इसलिए अहंकार बंधन है। क्योंकि दूसरे के बिना हो ही नहीं सकता। अहंकार गुलामी है, क्योंकि दूसरे पर निर्भर होना पड़ता है-दूसरे की आंख, दूसरे का इशारा, दूसरे का ढंग, दूसरे की बात । इसलिए साधु चिंतित रहता है जिसको हम साधु कहते हैं। महावीर उसे साधु नहीं कहते । जिसको हम साधु कहते हैं, वह चिंतित रहता है कि आपको उसकी किसी बात में गलती तो नहीं लग रही है, कुछ पता तो नहीं
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